scriptइसीलिए कहते हैं प्रकृति बहुत कुछ सिखाती है… तभी तो रिश्तों में मिठास भी घोल रहा संकटकाल | That is why nature teaches a lot | Patrika News

इसीलिए कहते हैं प्रकृति बहुत कुछ सिखाती है… तभी तो रिश्तों में मिठास भी घोल रहा संकटकाल

locationजबलपुरPublished: Jun 01, 2020 09:40:59 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर में लॉकडाउन के क्वालिटी टाइम में फ्रेंड बन गए मम्मी पापा और बच्चे

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जबलपुर। कहा जाता है कि प्रकृति हमेशा कुछ न कुछ सिखाती रहती है। तभी तो कोरोना काल में भी लॉकडाउन के दौरान रिश्तों में मिठास भी घुल रही है। क्वालिटी टाइम में माता पिता और उनके बच्चों के बीच रिश्तों का सुखद एहसास हुआ। पहली बार ऐसा अवसर आया कि लोग दो माह तक पूरे टाइम घर में रहे और बच्चे एवं माता-पिता आपस में फ्रेंड की तरह हो गए। लोग अनुभव कर रहे हैं कि लॉकडाउन से पहले तक वे अपने रिश्तों को पूरी तरह नहीं निभा कर बहुत कुछ खो रहे थे। लोग अपने बच्चों की पढ़ाई से लेकर खेल तक की गतिविधियों में सहभागी बन रहे हैं। बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों को जीवन के अनुभव बताकर खुश हैं। मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रत्ना जौहरी बताती हैं कि लॉकडाउन में लम्बे समय तक मां बाप और बच्चे एक साथ रहे, उन्होंने एक दूसरे के नैसर्गिक स्वभाव को समझा और खुद में भी बदलाव किया। अच्छे रिश्ते से बच्चों के बौद्धिक, शारीरिक एवं मानसिक विकास में बेहतर परिणाम होगा, वहीं दोनों श्रेणी के लोगों के तनाव दूर होंगे। परिवार में प्रेम स्नेह और सहयोग का भाव महत्वपूर्ण है जो लॉक डाउन में प्राप्त हुआ।

अधिवक्ता अक्षत तिवारी ने बताया कि पहले हम मशीनों की तरह काम में लग जाते थे। सुबह घर से निकले और रात में आए। सुबह होते ही ऑफिस की चिंता बन जाती थी और पूरी तरह से बच्चे को समय नहीं दे पाते थे। अब वर्क कल्चर बदला है। वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग भी बेहतर तरीके से दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। समाजसेवी उमेश परवानी ने बताया कि भागदौड़ की जिंदगी में अक्सर कभी बच्चे तो कभी माता पिता अकेलापन महसूस करते थे। लॉक डाउन में ऐसे तमाम लोग हैं जो बुजुर्ग और बीमार माता पिता को पर्याप्त समय दे रहे हैं। इस दौर में खुलकर वार्तालाप होने से माता-पिता का अनुभव लोगों को प्राप्त हो रहा है। सीनियर सिटीजन माता-पिता भी अपने दायित्व निभा पा रहे हैं। ऑनलाइन क्लासेज से लेकर स्पोट्र्स आप कुछ अलग तरह की पैरेंटिंग हो गई है।

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