अधिवक्ता अक्षत तिवारी ने बताया कि पहले हम मशीनों की तरह काम में लग जाते थे। सुबह घर से निकले और रात में आए। सुबह होते ही ऑफिस की चिंता बन जाती थी और पूरी तरह से बच्चे को समय नहीं दे पाते थे। अब वर्क कल्चर बदला है। वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग भी बेहतर तरीके से दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। समाजसेवी उमेश परवानी ने बताया कि भागदौड़ की जिंदगी में अक्सर कभी बच्चे तो कभी माता पिता अकेलापन महसूस करते थे। लॉक डाउन में ऐसे तमाम लोग हैं जो बुजुर्ग और बीमार माता पिता को पर्याप्त समय दे रहे हैं। इस दौर में खुलकर वार्तालाप होने से माता-पिता का अनुभव लोगों को प्राप्त हो रहा है। सीनियर सिटीजन माता-पिता भी अपने दायित्व निभा पा रहे हैं। ऑनलाइन क्लासेज से लेकर स्पोट्र्स आप कुछ अलग तरह की पैरेंटिंग हो गई है।