हाईकोर्ट ने पंद्रह दिन का दिया समय
जबलपुर•Jun 18, 2019 / 01:02 am•
prashant gadgil
mp high court
जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में राज्य सरकार से कहा कि प्रदेश के सरकारी कॉलेजों के लिए की जा रही असिस्टेंट प्रोफेसर्स की नियुक्ति में दिव्यागों को दिए जा रहे अनुचित व अधिक आरक्षण पर पुनर्विचार किया जाए। एक्टिंग चीफ जस्टिस आरएस झा व जस्टिस विशाल धगट की डिवीजन बेंच ने कहा कि आरक्षण के नियमों का पालन कर नई चयन सूची पंद्रह दिनों के अंदर जारी की जाए। स्पष्ट किया गया कि दिव्यांग कोटे के आरक्षण व उसमें हुई नियुक्तियों के अलावा नई चयन सूची के लिए किसी अन्य मुद्दे पर विचार नहीं होगा।
छह की जगह किया 13 व 18 फीसदी
मुरैना की अंबवाह तहसील निवासी राकेश कुमार तोमर, सीहोर जिला निवासी घनश्याम चौकसे व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में कहा गया कि सहायक प्राध्यापक की नियुक्तियों में दिव्यांगों के लिए छह फीसदी आरक्षण है। लेकिन, सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2018 में दिव्यांगों को निर्धारित आरक्षण से दोगुने से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। अधिवक्ता उदयन तिवारी, ब्रह्मानंद पांडेय, ब्रह्मेंद्र पाठक, नित्यानंद मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि राज्य लोक सेवा आयोग ने सहायक प्राध्यापक परीक्षा के दौरान इसे अंग्रेजी विषय में 13 और अन्य विषय में 18 फीसदी तक कर दिया। तर्क दिया गया कि परीक्षा में पर्याप्त दिव्यांग नहीं मिले, तो आयोग ने सात सीट भूगोल में और 33 सीट अंग्रेजी में सामान्य कैटेगिरी से कैरीफारवर्ड करने की योजना बना दी। इससे सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को नियुक्ति नहीं मिल पाएगी। ये अगले बैकलॉग हो जाएंगे, जिन पर दिव्यांगो का अधिकार हो जाएगा।
सरकार ने मानी गलती
सात जनवरी को प्रारम्भिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने असिस्टेंट प्रोफेसर्स की नियुक्ति प्रक्रिया में आगामी आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। सोमवार को महाधिवक्ता शशांक शेखर ने बताया कि उक्त परीक्षा के नियम निर्धारण मेें त्रुटियां हुईं। उन्होंने अभिवचन दिया कि दिव्यांगों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 34 का पालन करते हुए फिर से दिव्यांगों के लिए आरक्षण तय किया जाएगा। इसके बाद नई अंतिम चयन सूची जारी होगी। इस पर कोर्ट ने याचिकाओं का निराकरण कर दिया। एमपीपीएससी की ओर से अंशुल तिवारी व हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने पक्ष रखा।