ओक ने युवाओं से कहा कि वे रामायण के माध्यम से खुद को खोजने का उपक्रम प्रारंभ करें। रामायण से जुड़ते ही सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। युवाओं के पास आज जो तनाव, प्रतिस्पर्धा और अधैर्य का अतिरेक है, उसे कम करने के लिए रामायण का अध्ययन, मनन और चिंतन ही एक सर्वोत्कृष्ट उपाय है। उन्होंने कहा कि जब विदेशों में भी रामायण की महिमा दिनों दिन तीव्रतर हो रही है तब भारत के युवा यदि रामायण से दूरी रखेंगे तो ये अच्छा नहीं होगा। युवा सप्ताह में कम से कम दो दिन रामायण से जरूर जुड़े।
समृद्धि के शिखर पर विराजमान था रामायण काल
दूसरी वल्र्ड रामाण कॉन्फ्रेेन्स के पूर्व मानस भवन में आयोजित व्याख्यान में स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने रामायण काल में आर्थिक समृद्धि विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि रामायण काल की आर्थिक समृद्धि को लेकर किसी भी प्रकार का संशय नहीं है। निश्चित तौर पर उस कालखंड की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत एवं व्यवस्थित थी। चाहे वो बाल्मीकि रामायण हो या रामचरित मानस, कहीं भी आर्थिक मंदी का उल्लेख नहीं है। इसलिए दावे के साथ कहा जा सकता है कि राम जब शासक थे, तब धरती पर वैभव बरस रहा था। उन्होंने कहा कि रामायण की चौपाइयों में वर्णित है कि चक्रवर्ती राजा की संपत्ति देखकर कुबेर और राजा इंद्रदेव भी ईष्र्या करते थे। प्रवचन की श्रृंखला में स्वामी गिरीशानंदजी सरस्वती ने वाल्मीकीय रामायणामृतम् पर प्रवचन दिए। वाल्मीकीय रामायण से जुड़े पहलुओं पर गहन-गम्भीर चर्चा हुई।