ज्ञानरंजन इसलिए भी चर्चित हुए क्योंकि उन्होंने मध्यवर्ग की नई पीढ़ी क्या सोचती है, उन स्थितियों को पकड़ा और कहानियों की रचना की।
जबलपुर। राजेन्द्र यादव के बाद हिंदी कहानियों के पाठकवर्ग में जो नाम अदब से लिया जाता है, वो हैं आज के दौर के कथाकार और ‘पहल’ के सम्पादक ज्ञानरंजन! ज्ञानरंजन के बारे में इतना जान लीजिए कि उन्होंने ‘पहल’ को वो मुकाम दिलवाया है जहां इस मैगजीन का इंतजार होता है। इतना ही नहीं भारत की कई जेलों में तक पहल का इंतजार किया जाता है। उनके प्रशंसक उनसे की गई गुफ्तगू के किस्से चाव से सुनाते हैं और उन्हें पढ़ना सुकून देता है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मलय बताते हैं- ज्ञानरंजन जीएस कॉलेज में प्रोफेसर थे, और तब उनकी महत्वपूर्ण कहानियां चर्चा में थीं। जहां तक मुझे याद है वह 50-60 का दशक था। इलाहबाद से निकलने वाली मैग्जीन में उनकी कहानियां छपती थीं।
उस वक्त के जीवन पर आधारित कहानियां विशेषकर युवा, बुजुर्ग, परिवार, चरित्र जैसे विषयों से जुड़ी होती थीं। ज्ञानरंजन इसलिए भी चर्चित हुए क्योंकि उन्होंने मध्यवर्ग की नई पीढ़ी क्या सोचती है, उन स्थितियों को पकड़ा और कहानियों की रचना की। मुझे उनकी ‘पिता’ कहानी बहुत पसंद है। क्योंकि उसमें श्रम को समर्पित पिता के आचरण को दर्शाया गया है।
एक पिता के किसानी संस्कार उसके बच्चों तक नहीं पहुंचते और वे श्रम से भागने लगते हैं और सुविधाओं के गुलाम होते जाते हैं। कुछ और कहानियां जैसे शेष होते हुए, घंटा, संबंध, बहिर्गमन, अनुभव एक अलग ही महत्व की हैं।
कहानी जो समाज का दर्पण
समाज में बिखरे हुई कई एेसे स्रोत, विषय थे, विकृतियां थीं जिसे ज्ञानरंजन ने अपनी रचनाआें का आधार बनाया। वे अपनी कहानियों से हर वर्ग के लोगों की मनोस्थितियों का मंथन करते रहे। अक्सर उनके साथ बैठने पर साहित्यिक चर्चाएं ज्यादा होती है। नव लेखकों की रचनाओं के संबंध में हमारी बात होती है। ज्ञानरंजन को इसलिए लोग महत्व देते हैं क्योंकि उन्होंने कई नए रचनाकारों को पहल के जरिए साहित्य जगत में स्थापित होने का अवसर दिया।
मुझे बताया मेरी रचना छपी
मैं इंजीनियरिंग कॉलेज गया था जब पहली बार मेरी मुलाकात उनसे हुई थी। तब ज्ञानरंजन ने मुझसे कहा कि आपको पता है कि आपकी कविताएं राजस्थान की कविता मैग्जीन में छपी हैं। मैंने कहा दिखाइए, तब बोले कि नहीं मैं अभी नहीं दूंगा। जब यह मैगजीन पढ़ लूंगा तब आपको दूंगा।
भाषा ही उनकी पहचान 50 रचनाकारों की
रचनाएं रख दें और ज्ञानरंजन की भाषा पहचानने को कहें तो उनकी रचना अपने आप बोलेगी। वे भदेश शब्दों को लेकर एेसा अर्थ देते हैं कि उसमें किरण की नोंक पैदा कर देते हैं। वे गहरे अनुभवों को कहानियों के रूप में खास अंदाज में सामने लाते हैं। इसलिए वे कालजयी रचनाकार हैं।
चार साहित्यकार
दूधनाथ सिंह, कालिया, काशीनाथ सिंह और ज्ञानरंजन चार लोगों का गुट था जो साथ-साथ लिखते थे। कालिया का देहावसान हो चुका है। ज्ञानरंजन ने तकरीबन 35 साल पहले कहानी लेखन बंद कर पहल की शुरुआत की। पहल का प्रकाशन बीच में बंद हुआ मगर अब पुन: शुरू हो चुका है। बाकी दो आज भी लिख रहे हैं।
ज्ञानगरिमा मानद अवार्ड
वर्ष 2016 का ज्ञानगरिमा मानद अलंकरण वरिष्ठ कहानीकार ज्ञानरंजन को प्रदान किया जाएगा। यह अलंकरण ज्ञानरंजन को उनके निवास पर दिया जाएगा। इस अलंकरण के तहत एक वर्ष तक प्राप्तकर्ता को हर माह 11 हजार की राशि साहित्य कार्यों के लिए दी जाएगी।