घमंडी चौक पर चली थी गोली
उन्होंने बताया कि 14 अगस्त 1942 को घमंडी चौक की ओर से क्रांतिंकारी युवकों का एक समूह फुहारा की ओर आ रहा था। फौज की उस समूह से बहस हो गई। तो फौज गोलियां बरसाने लगी। क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे 17 साल के गुलाब ङ्क्षसह ने अंग्रेजी फौज को देखते ही जोरदार स्वर में वन्दे मातरम् का जयघोष किया। तभी अंग्रेजी सैनिक की एक गोली उनके माथे में जा धंसी और वे वहीं गिर गए। इस मंजर को जिसने भी देखा, वह आंसू रोक नहीं पाया।
लाठियां बरसीं तो आंदोलन हुआ उग्र
स्वतंत्रता संग्राम के सहभागी कोमलचन्द्र जैन ने बताया भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा होते ही 9 अगस्त 1942 को इसके समर्थन में शहर के तिलकभूमि तलैया में आमसभा रखी गई। एक सप्ताह तक हड़ताल करने का निर्णय लिया गया। 11 अगस्त को फुहारे पर आंदोलन कर रहे सत्याग्रहियों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं। इससे आंदोलन उग्र हो गया था।
शहादत से खौल उठा था मध्यभारत
स्मृतियों को कुरेदते हुए कोमलचन्द जैन ने बताया कि 14 अगस्त के उस दिन हल्की बारिश हो रही थी। वे दोस्तों के साथ खेल रहे थे। तभी दोस्तों ने कहा कि महात्मा गांधी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इसके विरोध में प्रदर्शन करना है, चलो फुहारा चलते हैं। आनन-फानन में सभी घमंडी चौक पहुंच गए। वहां फौज तैनात थी। घमंडी चौक में फुहारे से निकले जुलूस पर पुलिस ने गोलियां बरसाईं, जिसमें गुलाब ङ्क्षसह शहीद हो गए। इस घटना ने संस्कारधानी सहित पूरे महाकोशल क्षेत्र में करो या मरो की भावना को और प्रबल करने में अहम भूमिका निभाई। जैन ने स्वतंत्रता के पूर्व व वर्तमान परिप्रेक्ष्य की तुलना करते हुए मार्मिक अंदाज में कहा कि तब पूरा देश एक था।
बच्चे, बूढ़े, जवान सब कर रहे थे विरोध
जैन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने पत्रिका से 1942 की अगस्त क्रांति की यादें साझा करते हुए बताया कि उस समय बुजुर्गों के साथ नौजवान और किशोर भी अंग्रेजों का विरोध करने के लिए तत्पर रहते थे। महात्मा गांधी द्वारा आरम्भ किए गए भारत छोड़ो आंदोलन की आग संस्कारधानी के लोगों के दिलों में भी धधक रही थी। जैन उस समय 14 साल के थे।
जेल में रहे ये वीर
जैन ने बताया कि फूलचंद्र श्रीवास, बल्लू दर्जी, बाबूलाल गुप्त, प्रभादेवी सराफ, नेमचंद्र जैन, नेमीचंद्र जैन, नारायण प्रसाद अग्रवाल, नारायण दास जैन, नन्हे ङ्क्षसह ठाकुर, नर्मदा प्रसाद सराफ, पन्नालाल जैन, द्वारका प्रसाद अवस्थी, देवीङ्क्षसह जाट, देवीचरण पटेल, देवनारायण गुप्त, देवनारायण शुक्ला सहित जबलपुर के कई ज्ञात-अज्ञात सेनानियों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके लिए अंग्रेजों की प्रताडऩा सही व जेल में भी रहे।