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साप्ताहिक बाजार में दिखी महिला हुनरमंदों की संघर्ष गाथा

locationजबलपुरPublished: Feb 28, 2016 11:33:00 pm

Submitted by:

awkash garg

पापड़-अचार बनाने के हुनर ने दिखाई सफलता की राह, गोलबाजार में नगर निगम द्वारा गरीब शहरवासियों द्वारा उत्पादित सामग्रियों का लगा बाजार

जबलपुुर 55 साल की रांझी निवासी कमला बाई के हाथों का बना अचार-पापड़ एक बार जिसने चख लिया। वह उनके स्वाद का मुरीद हो गया। घर बैठे इतना ऑर्डर मिलता है कि उसे पूरा करने में उन्हें रोज कई घंटे काम करना पड़ता है। महज 100 रुपए की लागत से काम शुरू किया था। अब हर महीने चार से पांच हजार रुपए का मुनाफा हो रहा है। नगर निगम द्वारा गोलबाजार में आयोजित साप्ताहिक हाट बाजार में एेसी कई महिलाएं और उनके स्व सहायता समूहों द्वारा तैयार पापड़-अचार के स्टॉल लगे हैं। रविवार को योजना प्रभारी नवीन रिछारिया ने निगमायुक्त वेदप्रकाश के साथ मेले का शुभारंभ किया। दर्जन भर लोगों ने मेले में स्टॉल लगाए हैं। 

एक लाख लोन लेकर शुरू किया कारोबार 
शांतिनगर स्थित जागृति कुटीर उद्योग की संचालक राजकुमारी ने दो साल पहले एक किलो पापड़ बनाने का काम शुरू किया था। फिर चार-पांच महिलाओं का समूह बना लिया। काम बढ़ाने के लिए एक लाख का लोन भी लिया है। अब घर से ही लोग अचार-पापड़ खरीद लेते हैं। हर महीने समूह को तीन से चार हजार रुपए की आमदनी हो रही है। 

पीढि़यों का हुनर काम आया
गलगला स्थित पूजा स्व सहायता समूह की पूजा बादवानी के लिए बुरे समय में पीढि़यों का हुनर काम आया। 10 साल पहले महज दो किलो पापड़ बनाने से शुररुआत की थी। सत्संग, मेला या अन्य आयोजनों में जाती तो ऑर्डर ले लेतीं। काम बढ़ा तो अपने जैसी 25 गरीब महिलाओं को भी जोड़ लिया। आलू के पापड़, मूंग, बिजौरी, साबूदाना आदि के ढेरों उत्पाद बना रही हैं। 

weekly bazaar jabalpur

मायके का हुनर, ससुराल में काम आया
तुलाराम निवासी नीलमणि गुप्ता ने भी 20 साल पहले पापड़ बनाने का काम शुरू किया था। मायके में पापड़ बनाना सीखा था। अब घर से ही सारा माल बिक जाता है। वे छह से सात हजार रुपए प्रति माह कमा लेती हैं। इसी तरह करमेता स्थित आशा स्व सहायता समूह की लक्ष्मी दुबे ने 10 महिलाओं के साथ छह महीने पहले पापड़-अचार बनाने का काम शुरू किया है। इस समूह ने हजार रुपए से व्यवसाय शुरू किया। 

नमकीन बना सहारा 
मदनमहल स्थित अंजली स्वयं सहायता समूह के जितेंद्र एमपीईबी में चाय की कैंंटीन चलाते थे। कैंंटीन बंद हुई तो चार साल पहले नमकीन बनाकर वहां के कर्मियों को बेचने लगे। अब वे हर महीने से पांच से छह हजार रुपए बचा लेते हैं।

रोज आठ घंटे पापड़ बनाती हैं कुसुम
घमापुर स्थित दुर्गा स्वयं सहायता समूह की कुसुम जायसवाल पहले अगरबत्ती बनाती थीं। आमदनी कम होने के चलते 20 साल पहले पापड़ बनाना शुरू किया। रोज सात से आठ घंटा तरह-तरह के पापड़ बनाने में लगाती हैं। घर से ही सेल्समैन उत्पाद खरीद लेते हैं। 

देसी मसालों में उस्ताद
गढ़ा फाटक स्थित स्मिता गृह उद्योग मसाले से जुड़े नितिन व मनोज ने बताया कि उनके यहां 30 साल से अचार, उपवास सामग्री, बरी सहित लगभग 60 तरह के विभिन्न उत्पाद तैयार होते हैं। इससे 12 अन्य लोगों को भी रोजगार मिल रहा है। लोगों का विश्वास हासिल करने में समय लगा। अब तो घर बैठे उत्पाद बिक जाते हैं। इसी तरह शाहीनाका निवासी एमएम अग्रवाल द्वारा 40 साल से शांति नाम से चटपटा मसाला, पापड़ और अचार तैयार कराए जा रहे हैं।

लिज्जत का भी लगा स्टॉल
इस मेले में लिज्जत पापड़ का भी स्टॉल लगा है। इस मौके पर लिज्जत के नए प्रोडेक्ट राइस पापड़ की लाचिंग भी की गई। इस मौके पर एनयूएलएम के सुनील दुबे, सुपर्णा ठाकुर, प्रेक्षा ओसवाल सहित कई लोग उपस्थित थे।

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