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संस्कारधानी के शक्तिपीठ : सदर की काली माई को सहन नहीं होती गर्मी, भक्तों ने लगवाया एसी

locationजबलपुरPublished: Mar 29, 2020 12:07:42 am

Submitted by:

abhishek dixit

संस्कारधानी के शक्तिपीठ : सदर की काली माई को सहन नहीं होती गर्मी, भक्तों ने लगवाया एसी

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Maa Kaali

जबलपुर. सदर स्थित प्राचीन काली माई मंदिर जन आस्था का बड़ा केंद्र है। मंदिर में स्थापित काली माता की प्राचीन प्रतिमा से गर्मी में पसीना निकलने लगता है। इसलिए भक्तों ने मंदिर में एसी लगवाया है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां काली की प्रतिमा 550 साल पुरानी है। इसकी स्थापना गोंडवाना साम्राज्य के दौरान हुई थी। माता के शृंगार के दौरान एसी बंद होने पर मां की प्रतिमा पर पसीने की बूंदें उभर आती हैं। कई बार इसके कारणों की खोज की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चल सका।

नहीं हिली मूर्ति
स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो रानी दुर्गावती के शासनकाल में मां शारदा और काली की मूर्ति को बैलगाड़ी पर मंडला से जबलपुर लाया गया था। दोनों प्रतिमाओं को मदन महल पहाड़ी पर स्थापित किया जाना था। राता होने की वजह से बैलगाड़ी चालक ने दोनों प्रतिमाओं को सदर बाजार (वर्तमान स्थल) पर बैलगाड़ी से उतार दिया और रात्रि विश्राम के लिए घर चला गया। सुबह उसने प्रतिमाओं को बैलगाड़ी पर रखने का प्रयास किया। इस दौरान मां शारदा देवी की प्रतिमा तो उठ गई, लेकिन काली माता की मूर्ति टस से मस नहीं हुई। लोगों ने खूब प्रयास किए, पर सफलता नहीं मिली। तब क्षेत्रीय लोगों ने प्रतिमा को यहीं पर स्थापित करने का निर्णय किया। उस समय से प्रतिमा यहीं विराजमान है। पहले प्रतिमा पीपल के वृक्ष के नीचे थी। अब वहां भव्य मंदिर बन गया है।

दूसरी प्रतिमा मदन महल में
मदन महल किले के समीप पहाड़ी पर विराजित मां शारदा देवी की प्रतिमा उसी समय की है। यहां इनकी विधि विधान से स्थापना कराई गई।

पसीना बना रहस्य
क्षेत्रीय जनों के अनुसार देवी प्रतिमा को पसीना आने की रहस्मय घटना की कई बार जांच कराई गई। विशेषज्ञों के अनुसार मां काली की प्रतिमा विशेष प्रकार के पत्थर से बनाई गई है। इसमें पसीने जैसी पानी की बूंदें कहां से आती हैं, यह अब भी रहस्य है।

रात में आती हैं माता
मंदिर प्रबंधन के अनुसार यहां माता की मौजूदगी पूरे समय बनी रहती है, इसलिए रात को मंदिर परिसर खाली करवा दिया जाता है। यहां प्रसाद बेचने वाले रमेश माली बताते हैं कि रात में मंदिर परिसर में माता का फेरा रहता है, इसलिए यहां किसी को रुकने नहीं दिया जाता।

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