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जबलपुर. धुआंधार, सिद्धेश्वर जलप्रपात का अप्रतिम सौंदर्य, स्वर्ग का अहसास कराता स्वर्गद्वारी, शहर की समृद्ध विरासत की कहानी बयां करते चौसठ योगिनी मंदिर, मदन महल का किला और शिलाओं का अद्भुत संतुलन दुनियाभर के पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। लम्हेटाघाट में डायनासोर के अवशेष, नर्मदा की वादियों में करोड़ों साल पुरानी संगमरमरी चट्टानों की मौजूदगी के बावजूद जबलपुर के पर्यटन स्थल उपेक्षित हैं। नतीजतन साल-दर-साल यहां सैलानियों की आवक कम हो रही है। नर्मदा के सबसे विहंगम तट भेड़ाघाट को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र की ख्याति के अनुरूप पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने या विश्व धरोहर में शामिल कराने के लिए ठोस प्रयास भी नहीं हुए।
तिलवाराघाट में लाखों रुपए खर्च कर लगाए गए धौलपुरी पत्थर बाढ़ में उखड़ गए हैं। उन्हें अब तक व्यवस्थित नहीं किया गया है। ग्वारीघाट में उमाघाट सहित अन्य तट भी बदहाल हैं। प्रदेश सरकार ने इस घाट को पवित्र क्षेत्र घोषित किया था, लेकिन तट के विकास के नाम पर कोई फंड नहीं मिला।
संतुलित शिलाओं की बेकद्री
बैलेंसिंग रॉक का अद्भुत संतुलन देखकर दुनियाभर के पर्यटक नि:शब्द रह जाते हैं। मदन महल पहाड़ी, टनटनिया पहाड़ी, और चांदमारी पहाड़ी पर नौ अद्भुत शिलाएं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार करोड़ों साल पुरानी ग्रेनाइट की इन संतुलित शिलाओं की पैकेजिंग कर दी जाए तो ये पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकते हैं। शहर में हिल स्टेशन का अहसास कराने वाली पहाडिय़ां अतिक्रमण में खो गई थीं। हाईकोर्ट के आदेश पर मदन महल पहाड़ी से कब्जे हटाए गए, लेकिन मदन महल किला आज भी बदहाल है। पहाड़ी के अतिक्रमण मुक्त हुए अधिकतर इलाकों में मलबे का ढेर लगा है। पहाड़ी पर रोप-वे प्रोजेक्ट और मेडीटेशन सेंटर की स्थापना की योजना पर भी काम शुरू नहीं हुआ है।
सीमित एयर कनेक्टिविटी
पर्यटन विकास के लिए देश के प्रमुख शहरों से एयर कनेक्टिविटी आवश्यक है। जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट से कुछ शहरों के लिए ही फ्लाइट संचालित हैं। जानकारों के अनुसार एयर कनेक्टिवटी बढऩे से यहां अन्य देशों के लोग भी आ-जा सकेंगे।
देश के किसी भी स्मारक को वल्र्ड हेरिटेज सूची में शामिल कराने के लिए पहले देश के सम्भावित स्थलों की सूची में शामिल किया जाता है। भेड़ाघाट का नाम सम्भावित सूची में शामिल किया गया है। क्षेत्र में पर्यटन विकास के लिए हरसम्भव कदम उठाए जाएंगे।
प्रहलाद पटेल, केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री
सन् 1956 में जबलपुर राजधानी नहीं बन सका, लेकिन उस वक्त राजनीति में हमारे शहर का महत्वपूर्ण स्थान था। शहर को बड़े नेता मिले। यहां बड़ी कम्पनियों के कार्यालय भी थे। 1990 के बाद लगातार शहर की उपेक्षा हुई। बड़े कार्यालय चले गए। कांग्रेस की पंद्रह महीने की सरकार ने महाकोशल को महत्व दिया, अब फिर से इसे हासिए पर कर दिया गया है।
विवेक तन्खा, राज्यसभा सांसद