script23 साल भूकम्प से दहल उठा था यह शहर, लेकिन सीखा कुछ नहीं | This city was shaken by an earthquake for 23 years, learned nothing | Patrika News

23 साल भूकम्प से दहल उठा था यह शहर, लेकिन सीखा कुछ नहीं

locationजबलपुरPublished: May 22, 2020 11:30:11 pm

Submitted by:

shyam bihari

अति संवेदनशील जोन में शामिल जबलपुर में अभी भी झुग्गियों-पहाडिय़ों पर रह रही बड़ी आबादी
 

23 साल भूकम्प से दहल उठा था यह शहर, लेकिन सीखा कुछ नहीं

supatal basti

ये है स्थिति
– 22 मई 1997 को आया था भूकम्प
– 6.2 रिक्टर स्केल पर मापी गई थी तीव्रता
– 39 लोगों की हुई थी मौत
– 350 से ज्यादा लोग गम्भर रूप से हुए थे घायल
– 3.23 लाख भवन हुए थे क्षतिग्रस्त
– 34,557 परिवार हुए थे बेघर
– 05 हजार मकान हो गए थे बर्बाद
– नर्मदा फाल्ट की वजह से आया था भूकम्प
– कोसमघाट था केंद्र

जबलपुर। 23 साल पहले आए भूकम्प से हुई तबाही को जबलपुर के लोग आज भी नहीं भूल सके हैं। 6.2 तीव्रता वाले भूकम्प से हजारों मकान धराशायी हो गए थे। हर तरफ मकान के मलबे का ढेर लग गया था। कई परिवारों ने अपनों को खो दिया। इसके बावजूद अति संवेदनशील जोन में शामिल शहर की तस्वीर आज भी नहीं बदली है। ग्वारीघाट के दुर्गा नगर से लेकर लालमाटी, बाबा टोला समेत शहर के कई इलाकों में लोग झुग्गी-झोपडिय़ों में रह रहे हैं। कई इलाकों में अभी भी भवन निर्माण में भूकम्परोधी तकनीक का उपयोग नहीं हो रहा है। पहाडिय़ों पर भी मनमाने तरीके से भवनों का निर्माण हो रहा है।
पहाड़ी से हटाए हजारों भवन
जानकारों के अनुसार शहर की पहाडिय़ों पर भवन बनाकर रहना खतरनाक है। भूकम्प आने पर बड़ी जनहानि हो सकती है। ऐसे में जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने मदन महल पहाड़ी से अवैध कब्जे हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद नगर निगम प्रशासन ने शारदा मंदिर के समीप से सूपाताल के सामने, देवताल, चौहानी, बजरंग नगर क्षेत्र की पहाड़ी पर बने हजारों अवैध भवनों को हटाया। विस्थापित परिवारों के तिलहरी में पुनर्वास की व्यवस्था की गई। हालांकि शहर की टनटनिया पहाड़ी, सिद्धबाबा, लालमाटी सहित अन्य पहाडिय़ों पर अभी भी बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं।

इंजी. संजय वर्मा का कहना है कि जबलपुर भूकम्प के लिहाज से देश के अति संवेदनशील शहरों में शामिल है। 1997 के भूकम्प ने शहर में बड़ी तबाही मचाई थी। भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए भवनों का निर्माण भूकम्प रोधी तकनीक से होना चाहिए। इसके बावजूद अभी भी बड़ी संख्या में लोग झुग्गियों और पहाडिय़ों पर रह रहे हैं।

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