scriptइस बार होगा गोबर स्टिक से होलिका दहन | This time the Holika combustion from cow dung stick | Patrika News

इस बार होगा गोबर स्टिक से होलिका दहन

locationजबलपुरPublished: Mar 16, 2019 06:00:34 pm

Submitted by:

manoj Verma

पर्यावरण को बचाने दयोदय की अभिनव पहल, लकड़ी की जगह ढूढ़ा विकल्प

holi festival

पर्यावरण को बचाने दयोदय की अभिनव पहल, लकड़ी की जगह ढूढ़ा विकल्प

जबलपुर । होलिका दहन के दौरान पर्यावरण सुरक्षा को देखते हुए लकड़ी की जगह ‘गोबर स्टिक’ का विकल्प खोज लिया गया है। इसका इस्तेमाल लकड़ी की भांति किया जा सकेगा। तिलवारा स्थित ‘दयोदय’ गोशाला में गोबर स्टिक सहित गमले, फ्लावर पॉट, दर्पण आदि तैयार किए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गोबर स्टिक से होलिका दहन पारम्परिक और आस्था से जुड़ा रहेगा। शहरों में लकड़ी की कमी के चलते कहीं-कहीं पर टायर या डामर मिश्रित वस्तुओं का भी इस्तेमाल करने लगे हैं। इससे प्रदूषण तो फैलता ही है, आस्था को भी ठेस पहुंचती है।
तिलवाराघाट स्थित दयोदय केन्द्र ने होली को देखते हुए लकड़ी के विकल्प बतौर गोबर स्टिक (गोबर की लकड़ी) बनाई है। यह स्टिक देखने में लकड़ी की जैसी प्रतीत होती है। इसका भार लकड़ी से कम है। यह लकड़ी से तेज ज्वलनशील है। दयोदय के जानकार कहते हैं कि त्योहार पर पर्यावरण अनुकूल बनाए रखने के लिए जैन मुनियों ने इसकी खोज की है। इसके बाद इसे बनाने की युक्ति निकाली गई और फिर इसका प्रोडेक्शन शुरू किया गया है। मौजूदा हालात में गोबर की लकड़ी शहर सहित अन्य शहरों में सप्लाई की जा रही है। इसमें ग्राहक से सिर्फ बनवाई का पैसा ही लिया जाता है ताकि यह प्रोडेक्शन चलता रहे। इस लकड़ी की बिक्री की आय को दयोदय के उत्थान में ही खर्च किया जाता है।
देसी व्यंजन, पूजन में मांग
दयोदय से विक्रय होने वाली लकड़ी के बारे में बताया गया है कि यहां देसी व्यंजन (गक्कड़-भर्ता) बनाने वाले और पूजन सामग्री बेचने वाले इसे खरीद रहे हैं। सामूहिक धर्म कर्म में ज्यादातर गोबर की लकड़ी जा रही है। हाल ही में अंबिकापुर इसे भेजा गया है।
– मवेशियों के गोबर से पौधे लगाने वाले गमले तैयार किए जा रहे हैं। गमलों के डाई में गोबर डालकर इसे हॉट प्रोसेज से आकार दिया जा रहा है।
– इंटीरियर डेकोरेशन में फ्लॉवर पॉट, आइने आदि भी बनाए जा रहे हैं। इनमें डाई प्रोसेज से आकार देकर उसे फिनिश किया जा रहा है। यह कम पानी में पौध के लिए पोषक सिद्ध हो रहा है।
होली की उमंग, पर्यावरण के संग
भारत के ऋषि-मुनियों ने गैस की अदभुद सामथ्र्य को सदियों पहले ही जान लिया था, जिसे प्रकृति और यज्ञ से जोड़ा। इस क्रम में केन्द्रीय सांख्यकीय संगठन की निदेशक डॉ. ममता सक्सेना ने यज्ञ और उसके प्रभाव पर रिसर्च किया। रिसर्च में पाया कि गाय के गोबर सहित अन्य प्रकृतिक जड़ी-बूटियों के साथ हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है। इसमें बैक्टीरियल प्रभाव भी कम हो जाता है। गायत्री परिवार के ट्रस्टी देवेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया है कि होलिका दहन में गोबर सहित जड़ी-बूटियों में सतावर, अगर तगर, देवदार, चंदन,जायफल, गुगल, चिरायता, ग्लोब, अश्वगंधा, अर्जुन छाल, विल्ब छाल आदि का हवन करने से क्षेत्र प्रदूषण मुक्त होगा।
…ताकि पर्यावरण रहे शुद्ध
दयोदय पशु संबर्धन एवं पर्यावरण केन्द्र के उपाध्यक्ष संजय अरिहन्त का कहना है कि मुनिवरों के आदर्श पर चलने की हमारी कोशिश है। हमने अभी गो गोबर लकड़ी बनाने के साथ अन्य घरेलु इस्तेमाल में होने वाली सामग्री बनाई है, जिनका उपयोग खासकर सभी घरों में होता है। इन सामग्री से वायुमंडल को शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है। हमारी कोशिश भी यही है कि लोग घरों में गौ गोबर से निर्मित उत्पाद का इस्तेमाल करें, जिससे प्राकृतिक वातावरण निर्मित हो सके।
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