पश्चिम मंडला वनमंडल के जबलपुर से लगे चार रेंज बरेला, बीजाडांडी, काल्पी और टिकारिया के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर 35 हजार किमी जंगल को अभयारण्य घोषित करने की योजना है। इन क्षेत्रों में 55 राजस्व और 15 वनग्राम शामिल हैं। भोपाल मुख्यालय ने गांवों की शिफ्टिंग, लकड़ी और लघु वनोपज के उत्पादन के आर्थिक अनुमान की रिपोर्ट मांगी है। जबलपुर वन सर्किल में 12 सितम्बर को होने वाली बैठक में सम्बंधित क्षेत्र के डीएफओ रिपोर्ट तैयार कर इसके अंतिम स्वरूप पर विचार-विमर्श करेंगे।
जबलपुर सर्किल का पहला अभयारण्य
जबलपुर वन सर्किल के पूर्व मंडला में फैन अभयारण्य है। इसका संचालन कान्हा नेशनल पार्क प्रबंधन करता है। नया अभयारण्य स्वतंत्र रूप से जबलपुर वन सर्किल का पहला अभयारण्य होगा। संरक्षित क्षेत्र में पेड़ों की कटाई और लघु वनोपज का संग्रहण प्रतिबंधित है। जंगल में शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ाने के लिए पौधे और घास की प्रजातियां बढ़ाने के साथ पर्याप्त जलस्रोत बनाए जाएंगे। इस क्षेत्र में तेंदुए, लकड़बग्घा, चीतल, सांभर, खरगोश, जंगली सुअर, नीलगाय आदि वन्य प्राणी हैं।
बरगी डैम के कैचमेंट एरिया में कम होगा पटाव
कान्हा नेशनल पार्क के रिटायर एसडीओ राघवेंद्र बिसेन ने बताया कि अभयारण्य का का जंगल अच्छा होने से भूमि क्षरण रुकेगा। बरगी डैम के कैचमेंट एरिया में पटाव कम होगा। अस्सी के दशक में डैम बनाते समय जबलपुर से मंडला के सहस्त्रधारा तक नर्मदा के दोनों ओर 3-4 किमी के दायरे में आने वाले पेड़ों की कटाई से जैव विविधता नष्ट हो गई। नर्मदा का प्रवाह भी कमजोर हुआ है। अभयारण्य बनने से इसकी भरपाई होगी। मंडला में बनाए जा रहे चुटका परमाणु विद्युत संयंत्र से क्षेत्र में तापमान बढऩे से जंगल में संतुलन कायम होगा।
अभयारण्य के संरक्षित क्षेत्र में शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढऩे पर नेशनल पार्कों से बाहर निकलने वाले बाघों को नया ठिकाना मिलेगा। यह कान्हा नेशनल पार्क से लगा हुआ क्षेत्र है। इसके आस-पास भी नेशनल पार्क हैं।
– जेएस चौहान, एपीसीसीएफ, वन्यप्राणी मप्र
राजा दलपत शाह वन्यप्राणी अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव भोपाल मुख्यालय को भेजा गया है। मुख्यालय से कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई है। जल्द ही संशोधित प्रस्ताव भेजा जाएगा।
– आरडी महला, सीसीएफ, जबलपुर सर्किल