scriptbirds- खतरनाक हो सकती है यह चुप्पी | Tree cut without permission | Patrika News

birds- खतरनाक हो सकती है यह चुप्पी

locationजबलपुरPublished: Nov 22, 2019 07:56:53 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर में बिना अनुमति पेड़ों पर चल रही आरी, लगातार जा रही पक्षियों की जान

Smugglers cut 25 pieces of sandalwood tree

Smugglers cut 25 pieces of sandalwood tree

जबलपुर। कभी हरियाली से भरा जबलपुर शहर आज सफेद इमारतों के जंगल में बदलता जा रहा है। लोगों ने पौधरोपण की आदत छोड़ दी। सरकारी महकमे धड़ल्ले से पेड़ कटवा रहे हैं। बदले में पौधरोपण कराया नहीं जा रहा है। इससे जबलपुर शहर को नर्मदा किनारे बसे होने का कोई फायदा नहीं मिल रहा है। पहाडिय़ों का भी यह शहर फायदा नहीं उठा रहा है। यहां कुछ दिन पहले बीएसएनएल परिसर में पेड़ काटने से सैकड़ों पक्षियों की मौत हो गई थी। उस मामले में अभी आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हुई है। इस बीच यहां के गोहलपुर में इसी तरह का एक मामला और सामने आया। यहां बरगद के पुराड़े पेड़ की डालियों पर आरी चला दी गई। इस पेड़ पर पक्षियों के कई घोंसले थे। पेड़ काटने से पक्षियों के बच्चे और उनके अंडे प्रभावित हुए। सरेराह काटे गए इस पेड़ को काटने के लिए नगर निगम के उद्यान विभाग से अनुमति तक नहीं ली गई थी। एसपी कार्यालय में भी तीन हरे-भरे पेड़ बिना अनुमति के काट दिए गए।
गोहलपुर थाने से सटे धार्मिक स्थल के पास पुराने बरगद के पेड़ में सैकड़ों की संख्या में पक्षियों ने घोंसला बना रखा है। इसे नजरअंदाज कर उसकी कांट-छांट कर दी गई। इससे बहुत सारे पक्षियों की डाल के नीचे दबने से मौत हो गई। पेड़ काटने वाले ठेकेदार व कर्मियों ने इन पक्षियों को किसी अन्य स्थान पर भी नहीं पहुंचाया।
पुलिस अधीक्षक कार्यालय परिसर में भी नियम विरूद्ध तीन पेड़ों की कटाई कर दी गई। यहां आरी से पेड़ों को जड़ से काट दिया गया। हैरानी की बात ये है कि इसकी नगर निगम के उद्यान विभाग से अनुमति तक नहीं ली गई। तीनों ही पेड़ों को वहां के भवन के मरम्मत में व्यवधान के नाम पर काट दिया गया। जानकारों का कहना है कि जिस तरह से पेडों पर कुल्हाड़ी चलाई जा रही है, उससे आने वाले भविष्य में गम्भीर खतरा हो सकता है। इस मामले में आम लोगों की चुप्पी को भी खतरनाक माना जा रहा है। बात-बात पर हंगामा करने वाले इस मामलें में चुप्पी साध लेते हैं। यदि आम लोग इस मुद्दे को गम्भीरता से से लेने लगें, तो सरकारी सिस्टम में भी बदलाव आ सकता है। इसके लिए सामाजिक संगठनों को भी आगे आना होगा। हालांकि, अफसरों को इस मामले में कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। उन्हें सिर्फ फाइलें बढ़ाना ही काम लगता है।

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