यहां पगडंडी से आ-जा रहे आदिवासी
आजादी के 74 साल बाद भी केवलारी गांव में नहीं बनी सडक़

जबलपुर. कहते हैं कि देश की 75 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। देश की अर्थव्यवस्था भी गांवों पर निर्भर है। बावजूद इसके सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां के ग्रामीणों को पगडंडीयुक्त रास्तों से होकर गुजरना पड़ रहा है। आजादी के 72 साल बाद भी इन गांवों को सडक़ नसीब नहीं हो सकी है।
शहर से बीस किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत उमरिया का पोषक ग्राम केवलारी एक ऐसा ही आदिवासी बाहुल्य गांव है, जहां के ग्रामीणों को कच्चे और पगडंडी युक्त मार्ग से होकर आना-जाना पड़ रहा है। गांव के आदिवासी ग्रामीण जिनकी जनसंख्या तीन सौ के करीब है। ग्राम में 70 से 80 घर हैं, जो पूर्णत: खेती पर निर्भर हैं।
बरसात में स्थिति होती है भयावह
ग्राम के प्यारेलाल गौंड, कोमल सिंह गौंड ने बताया कि हर गांव को सडक़ों से जोड़ा जा रहा है, लेकिन अब तक उनके गांव तक पक्की सडक़ नहीं बन सकी है। बारिश के दिनों में स्थिति भयावह होती है। ग्रामीणों को आने-जाने के लिए दूसरे जिले की सडक़ों का आसरा लेना पड़ता है। ग्राम के बच्चों को विद्यालय जाने के लिए कीचडय़ुक्त रास्ते हो कर गुजरना पड़ता है।
जीतने के बाद चेहरा नहीं दिखाते जनप्रतिनिधि
ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव में जनप्रतिनिधि ग्राम वोट मांगने तो आते हैं, लेकिन जीतने के बाद कोई भी अपना चेहरा नहीं दिखाता। ग्राम के श्यामलाल गौंड, कोमल सिंह, रतनलाल, छोटेलाल, पुनाराम मार्को सहित अन्य ने केवलारी मार्ग के निर्माण की मांग की है।
केवलारी मार्ग हमारे अधीन नहीं है। प्रस्ताव के आने पर मार्ग का सर्वे कराकर स्टीमेंट शासन को भेजा जाएगा।
शिवेंद्र सिंह, कार्यपालन यंत्री, पीडब्ल्यूडी
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