script

बंद हुए अशोक चक्र वाले सामान, सरकारी इमारतों पर तिरंगे की बंदिश हटी

locationजबलपुरPublished: Jan 25, 2019 01:28:43 am

Submitted by:

shyam bihari

high court

high court

high court

जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट संविधान के साथ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों को लेकर भी बेहद संवेदनशील रहा है। कोर्ट अपने फैसलों से सदैव राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान व राष्ट्रीय चिन्ह के सम्मान व गरिमा की रक्षा सुनिश्चित करती रही। राष्ट्रगान के अपमान को लेकर निर्माता करण जौहर की फि ल्म ‘कभी खुशी कभी कमÓ के प्रदर्शन पर कोर्ट ने बैन लगाया। हाईकोर्ट के निर्देश पर रेलवे ने राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र का अपमान बंद कर दिया, तो सरकारी इमारतों में प्रतिदिन राष्ट्रध्वज लहराने की बाध्यता भी खत्म हुई। राजनीतिक विद्वेष में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों के अपमान के फर्जी मामले खारिज कर कोर्ट ने दायर करने वालों को सबक भी दिया।
शर्तें हैं अनिवार्य
भोपाल निवासी पूर्व सैन्य अधिकारी वीके नसवा ने 2016 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि द फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 की धारा 2.1 एवं 2.3 के तहत देश की सभी सरकारी भवनों में हर रोज राष्ट्रीय तिरंगा फहराना अनिवार्य हो। याचिकाकर्ता ने बताया कि देश में करीब 10 हजार ऐसे सरकारी भवन हैं, जहां पोल तो लगे हैं, लेकिन उनमें राष्ट्रीय ध्वज नहीं लहराता। केवल राष्ट्रीय पर्वों पर ही झंडा फहराया जाता है। हाईकोर्ट ने 1अप्रैल 2017 को अपने फैसले में कहा कि सरकारी भवनों, संस्थाओं में हर रोज राष्ट्रीय ध्वज फहराना अनिवार्य नहीं है। द फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 में अनिवार्यता तिरंगा फहराने की शर्तों से सम्बंधित है।
17 साल पहले लगा था बैन
भोपाल के ही श्याम नारायण चौकसे ने करीब 17 साल पहले जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका दायर की। 2002 में जौहर की फिल्म कभी खुशी कभी ग़म रिलीज हुई, जिसमें एक सीन के दौरान राष्ट्रीय गान बजाया गया। चौकसे ने याचिका में कहा कि फिल्म में राष्ट्रीय गान का गलत इस्तेमाल किया गया। जब हॉल में यह धुन बजी, तब कोई भी इसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ। हाइकोर्ट ने चौकसे के पक्ष में आदेश देते हुए कहा कि जौहर को अपनी फिल्म से यह सीन हटाना होगा, तभी इसे प्रदर्शित किया जा सकेगा। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर स्टे दे दिया। 2016 में उन्होंने सुको में याचिका लगाई। 30 नवंबर 2016 को सुको ने फिल्म प्रदर्शन के पूर्व राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य कर दिया। हालांकि, केंद्र सरकार के अनुरोध पर सुको ने 10 जनवरी 2018 को यह आदेश संशोधित कर राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता समाप्त कर दी।
राष्ट्रीय चिन्ह की गरिमा का रखें ध्यान
जबलपुर के खालसा स्कूल की शिक्षिका शिल्पा स्थापक ने जनहित याचिका में राष्ट्रीय अशोक चिन्ह के अपमान पर चिंता जाहिर की थी। उनका दर्द यह था कि रेलवे की ट्रेनों में दिए जाने वाले डिस्पोजेबल कप में चाय-कॉफी पीने के बाद नीचे फेंक दिया जाता है, इस दौरान उनमें अंकित राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक अशोक चिन्ह का अनादर होता है।
इसी तरह एसी कोच के यात्रियों को दी जाने वाली चादरों पर भी अशोक चिन्?ह होता है, जो अपमानजनक है। इस याचिका की सूचना मिलते ही रेलवे बोर्ड के चेयरमैन व पश्चिम मध्य रेलवे के महाप्रबंधक ने 27 जनवरी 2014 को कोर्ट को बताया कि उक्त डिस्पेजेबल कपों, चादरों व अशोक चिन्ह मुद्रित अन्य सामग्री को रेलवे ने बंद कर दिया। कोर्ट ने याचिका निराकृत कर रेलवे को ताकीद दी कि भविष्य में राष्ट्रीय चिन्ह की गरिमा का पूर्ण ध्यान रखा जाए।
शिवराज-स्वराज के खिलाफ केस खारिज
नसरल्लागंज सीहोर निवासी कांग्रेस नेता द्वारका जाट ने कोर्ट में वाद दायर कर कहा कि विदिशा की भाजपा सांसद सुषमा स्वराज के नेता प्रतिपक्ष नियुक्तहोने के बाद मार्च 2010 में नसरल्लागंज में स्वागत सभा आयोजित की गई। उसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के जिला अध्यक्ष रघुनाथ भाटी और तत्कालीन कलेक्टर संदीप यादव मौजूद थे। इस दौरान एक बच्ची उल्टा तिरंगा लिए चल रही थी। सुनवाई के बाद सीहोर अदालत ने आरोपियों के खिलाफ वारंट जारी कर दिए। इसके खिलाफ रिवीजन की सुनवाई करते हुए अदालत ने 8 मई 2013 को उक्त कंपलेंट केस ही खारिज कर दिया गया। इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के केस खारिज करने के निर्णय को सही ठहराया।
कांतिलाल भूरिया को क्लीन चिट
दमोह जिला निवासी संजय सरवरिया ने पुलिस को शिकायत की कि 25 मई 2011 को तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया दमोह के तेंदूखेड़ा में एक सभा को सम्बोधित करने आए। इस दौरान उनके सरकारी वाहन पर लगा तिरंगा हुआ तिरंगा बीचोंबीच से 1.5 इंच व्यास में वृत्ताकार फटा था। इसकी ओर भूरिया का ध्यानाकर्षित किया गया, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इसे हास्य में टाल दिया कि यह छेद राज्य की भाजपा सरकार के समान है। भूािया के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इंस्ल्टस ऑफ नेशनल ऑनर एक्ट 1971 की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ। इसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने भूरिया को निर्दोष बताकर उक्त केस खारिज कर दिया।

ट्रेंडिंग वीडियो