योजना के तहत जिले में हर साल 70 से अधिक प्रकरणों का लक्ष्य मिलता है। इसमें सबसे अधिक 50-55 प्रकरण जिला एवं व्यापार उद्योग केंद्र के पास होते हैं। योजना वर्ष 2015-16 में शुरू हुई। शुरुआत में इसमें एक करोड़ रुपए तक की परियोजना स्वीकृत करने का प्रावधान था। वर्ष 2017-18 से योजना को दो करोड़ रुपए कर दिया गया। लेकिन, इसमें यह शर्त रख दी गई कि हितग्राही आयकरदाता नहीं होना चाहिए। इसलिए अब कम लागत वाले उद्योगों की स्थापना हो रही है। सर्विस यूनिट ही ज्यादा आ रही हैं।
ये था उद्देश्य
योजना शुरू करने का उद्देश्य ऐसे उद्योगों की स्थापना करना था, जिनमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। विशेषज्ञओं के अनुसार जब तक आयकरदाता का बंधन नहीं था, तब तक जिले में ठीकठाक उद्योगों की स्थापना हुई। लेकिन पिछले दो साल से इसमें कमी आई है। उद्योगों की लागत कम होने से कम लोगों को रोजगार मिल रहा है।
ये है तकनीकी खामी
योजना का अध्ययन करने वालों के अनुसार, योजना के प्रकरणों में बैंकों की ओर से 75 प्रतिशत योगदान दिया जाता है। यदि यूनिट की लागत दो करोड़ रुपए है तो बैंक 1.50 करोड़ रुपए ही देगा। शेष 25 प्रतिशत राशि (50 लाख रुपए) शासन और उद्यमी को देना पड़ता है। इसमें एमएसएमइ अधिकतम 12 लाख रुपए देता है। शेष 38 लाख रुपए हितग्राही को मार्जिन मनी के रूप में देने होते हैं। यदि कोई हितग्राही 38 लाख रुपए देगा तो वह आयकरदाता नहीं होगा।
ये है स्थिति
वर्ष : भौतिक लक्ष्य : वित्तीय लक्ष्य : वितरित प्रकरण : राशि : औसत लागत
2015-16 : 55: 1375 : 58 : 3221 : 55.53
2016-17 : 55 : 1925 : 84 : 5424 : 64.58
2017-18 : 55 : 1925 : 59 : 2654 : 44.98
2018-19 : 50 : 1750 : 50 : 2741 : 54.82
(नोट : आंकड़े उद्योग विभाग के, अन्य विभाग की ओर से भी योजना संचालित, राशि लाख रुपए में)
मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में आवेदक के आयकरदाता नहीं के प्रावधान के सम्बंध में शासन को अवगत कराया है। यह विषय शासन के पास विचाराधीन है।
आरसी कुरील, संयुक्त संचालक, उद्योग विभाग