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जबलपुर

जब मंच पर जीवंत हो उठा सम्राट अशोक का गौरव, देखते रह गए लोग

तरंग ऑडिटोरियम में नाटक सम्राट अशोक का मंचन

जबलपुरJul 13, 2018 / 08:42 pm

Premshankar Tiwari

unique drama on samrat ashok

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जबलपुर। एमपीईबी के तरंग ऑडिटोरियम में शुक्रवार शाम ‘सम्राट अशोकÓ के मंचन में रंगकर्मियों ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल छू लिया। बिना संवाद के ही दृश्यों ने कहानी का जो भाव प्रकट किया, उससे दर्शक भाव विभोर हो गए। मंच पर सम्राट अशोक के युद्ध कौशल, रक्तपात के साथ उनके स्त्री प्रेम, गौरव और धर्म पथ का जीवंत मंचन किया गया। दर्शक अंत तक इसके आकर्षण में बंधे रहे।
लाइट और साउंड का कमाल
मप्र नाट्य विद्यालय भोपाल की प्रस्तुति में पार्थो बंदोपाध्याय के निर्देशन में 25 युवा रंग कर्मियों ने नाटक का मंचन किया। आंगिक अभिव्यक्ति शैली के नाटक में लाइट और साउंड ने दृश्यों को जीवंत कर दिया। राधाकृष्ण नंद ब्रह्मा ने सम्राट अशोक, अदिति लाहोटी ने तिष्यरक्षिता और सौरभ सिंह परिहार ने राधा गुप्त करा अभिनय किया। सैनिक और बौद्ध भिक्षु के रोल में राजसी परम्परा और धार्मिक भाव दिखा।
ऐसे शुरू हुआ मंचन
राजा बिंदुसार के दो पुत्र थे सुशीम और अशोक। बिंदुसार ने सुशीम को राजगद्दी सौंपने की तैयारी की थी। इसी बीच मंत्री राधा गुप्त ने पाटलिपुत्र से अशोक को बुलाकर ताज पहना दिया। अशोक युद्ध कौशल में ज्यादा पारंगत थे। इसी शोक में बिंदुसार का निधन हो गया। अशोक ने भारत में अपने राज्य का विस्तार किया। कलिंग युद्ध में सैनिक रहे तृष्य रक्षिता के पिता शहीद हो गए। बदले की भावना से तिष्यरक्षिता राज दरबार पहुंची। वह रानी का दर्जा पाना चाहती थी। लेकिन, राजा को रानी देवी प्रिय थी। सम्राट अशोक की उम्र ज्यादा हो गई थी। उनकी सेहत खराब होने पर औषधियों की जानकार तिष्रक्षिता ने उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली औषधि दी। रानी का दर्जा नहीं मिलने पर तिष्यरक्षिता ने सम्राट अशोक के बेटे कुनाल से प्यार का इजहार किया। कुनाल ने उसे मां मानते हुए इनकार कर दिया। इसके बाद तिष्यरक्षिता ने सेनापति को अशोक स्तम्भ की मुहर लगा पत्र पत्र भेजा। इसमें लिखा गया था कि कुनाल को मार दिया जाए या अंधा कर दिया जाए। कुनाल अंधा होकर राजदरबार पहुंचा तो सम्राट अशोक ने तिष्यरक्षिता को जिंदा जलवा दिया। अशोक के दान से राज कोष खाली होने लगा तो मंत्री ने उन्हें बंदी बना दिया। रानी के बौद्ध धर्म अपनाने पर सम्राट अशोक ने भी तथागत बुद्ध का धर्म अपना लिया।
कहानी का भाव
हर व्यक्ति दो स्तर पर जीवन जीता है। एक अंतरंग सहचरी, संतान की उष्मा और पारस्परिक विश्वास जो जीवन को अर्थ देते हैं। दूसरा- बहिरंग हारे हुए लोगों से जय जयकार सुनने की ललक, जो अंतत: निरर्थक सिद्ध होती है। नाटक में बताया गया कि शक्तिशाली सम्राट अशोक स्त्री सौंदर्य के प्रति आकर्षित होकर धोखे में पड़ जाते हैं, अंतत: सत्य, अहिंसा और कल्याण के मोक्ष मार्ग पर शांति मिलती है।
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