अनूठी है बावड़ी
बाजनामठ मोड़ से ठीक पहले मुख्य मार्ग पर स्थित विषकन्या की बावड़ी का आकर्षण आज भी लोगों के कदम रोक देता है। बावड़ी के चारों तरफ नक्काशीदार सीढिय़ां बनी हुई हैं। बीच में एक परकोटा है, जिसमें बैठने व स्नान आदि के लिए अलग-अलग स्थान बने हुए हैं। विशाल पत्थरों से बनी इस बावड़ी के समीप काल भैरव का एक मंदिर और अखाड़ा भी है, जो अब भी युवाओं को यहां खींच लाता है। यह बात अलग है कि पुरातत्व विभाग का इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं है। विरासत उपेक्षित नजर आ रही है। पत्रिका की आवााज पर नगर निगम ने बावड़ी में संरक्षण व सौंदर्यीकरण का कुछ काम कराया है।
ये है कहानी
बावड़ी देखने में जितनी खूबसूरत है, इसकी कहानी भी इतनी ही रोचक है। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि कहानी गुजरात से शुरू होती है। करीब 11 वीं शताब्दी में यहां कुमार पाल नामक राजा का राज्य था। इसका विस्तार जबलपुर तक था। राजा का बहनोई कृष्णदेव सेना का नेतृत्व किया करता था। सेनापति कृष्णदेव को राज्य की ही एक बेहद खूबसूरत नर्तकी नीलमणि से कृष्णदेव को प्रेम हो गया। नील मणि के प्यार में वह इतना दीवाना हो गया कि कुमारपाल की बहन की सुध ही भुला दी।
जान से मारने का आदेश
नीलमणि और कृष्णदेव के बीच प्रेम प्रसंग की बात ज्यादा दिन तक छिपी नहीं रह सकी। बहनोई की इस हरकत पर राजा कुमारपाल को बेहद क्रोध आया। उसने नीलमणि और अपने बहनोई को जान से मारने का आदेश दे दिया। इतिसाकार बताते हैं कि एक दिन सैनिकों को नीलमणि व कृष्णदेव, आरामगाह में मौजूद दिखाई दिए। सैनिकों ने घेराबंदी कर ली। कृष्णदेव को मौत के घाट उतार दिया, लेकिन नीलमणि जैसे-जैसे वहां से जान बचाकर भाग निकली और जाबालिपुरम् यानी जबलपुर आक यहां मेडिकल के समीप एक बावड़ी के पास बनी गुफा में छिपकर रहने लगी।
मन में प्रतिशोध की आग
बताया गया है कि यहां गुफा में रहते हुए नीलमणि ने राजा से बदला लेने की योजना बनाई। उसका शरीर प्रतिशोध से जल रहा था। इस वक्त नीलमणि गर्भवती थी। उसने शिशु के रूप में कृष्णदेव की याद को सदा जीवंत रखने का मन बनाया और कुछ समय बाद खूबसूरत कन्या को जन्म दिया। और इसका नाम बेला रखा।
ऐसे बनी विषकन्या
बेटी के जन्म के बाद ही नीलमणि धीरे-धीरे उसे जहरीले सांपों का विष पिलाना शुरू करती है। वयस्क होते-होते वह जहर की आदी हो गई। जब उसका शरीर जहरीला हो गया तो नीलमणि ने पूरी योजना के तहत उसे राजा कुमार पाल के पास भेजा। बेला की सुंदरता व भाव-भंगिमाओं पर राजकुमार फिदा हो जाता है। दोनों के बीच प्रेम कहानी चल पड़ती है। एक रात बेला के संपर्क में आने के बाद कुमार पाल की मौत हो गई। बेला ने कई दुश्मनों से इसी तरह बदला लिया। लोगों को वर्षों बाद में पता चला कि बेला सामान्य लड़की नहीं बल्कि विषकन्या है। सभी उससे डरने लगे और उसे विषकन्या का नाम दे दिया। चूंकि बेला अपनी मां के साथ इसी बावड़ी के परकोटे के समीप गुफा में रहती थी, इसलिए बावड़ी का नाम ही विषकन्या की बावड़ी हो गया। आज भी काफी संख्या में लोग यहां जाते हैं।