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independence day specail : आजादी के दीवानों ने अपने लहू से बनाया था तिरंगा, आज भी जीवंत हैं यादें

locationजबलपुरPublished: Aug 11, 2018 10:33:36 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

जबलपुर से शुरू हुआ था स्वाधीनता का झंडा सत्याग्रह, दांडी मार्च को भी संस्कारधानी ने दी थी ताकत

unique story flag satyagraha

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जबलपुर। पौराणिक शहर जबलपुर की देश की आजादी के आंदोलन में भी अहम भूमिका रही। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान शायद ही कोई ऐसा शीर्ष नेता रहा हो जो जबलपुर की धरती पर नहीं आया हो। इतिहासविदों के अनुसार आजादी के लिए झंडा आंदोलन की शुरूआत ही जबलपुर से हुई थी। यहां आजादी के लिए जुनून ऐसा था कि जेल में तिरंगे के लिए लाल रंग नहीं मिला तो नौ जवानों ने अपना लहू निकालकर उससे केसरिया रंग बना लिया। हर तरफ वंदे मातरम् के स्वर गूंज उठे। तिरंगे की सलामी के जश्न का अवसर 26 जनवरी को फिर से आ रहा है। आइए आपको भी तिरंगे को लेकर जबलपुर के योगदान से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से अवगत कराते हैं।

जेल में हुआ ये घटनाक्रम
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि 1930 के दशक में झंडा सत्याग्रह को लेकर नौ जवानों में गजब का उत्साह था। इस बात का प्रमाण ये है कि जबलपुर जेल में बंद सत्याग्रही विश्वंभर नाथ पांडेय, सत्येन्द्र मिश्र, पूरनचंद शर्मा, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, एंव बदी्र प्रसाद आदि ने जेल में ही झंडा फहराने की योजना बनाई। खादी के सफेद कपड़े को तिरंगे के लिए चुना। पत्तों को निचोड़कर हरा रंग बनाया। सफेद रंग कपड़े में ही था, लेकिन लाल रंग नहीं मिला तो सत्येन्द्र प्रसाद मिश्र ने अपनी कलाई चीरकर लहू से लाल रंग बनाया और जेल में झंडा भी फहराया था।

और शुरू हो गया झंडा सत्याग्रह
इतिहास विद परशुराम मिश्र के अनुसार 1923 में बाबू राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज, देवदास गांधी समेत अन्य कांग्रेस समिति पदाधिकारी जबलपुर आए थे। म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष कन्छेदीलाल जैन ने डिप्टी कमिश्नर हैमिल्टन से टाउनहाल में झंडा चढ़ाने की अनुमति चाही, जो नहीं मिली। इससे उपजे असंतोष के बाद जनता ने आंदोलन प्रारंभ किया जिसे झंडा सत्याग्रह नाम दिया गया। इस समय पं. सुंदरलाल नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे।

फिर नागपुर में जगी अलख
जबलपुर से अलख जगने के बाद नागपुर में झंडा सत्याग्रह शुरू हुआ जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। इसमें हजारों लोग नागपुर गए, जिनमें विश्वंभर दयाल पांडेय, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान भी शामिल थीं। नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पं. सुंदरलाल ने भारत में अंग्रेजी राज पुस्तक भी लिखी थी।

खुले आसमान के नीचे काटीं चार रातें
जबलपुर जेल मे ं12 दिसंबर 1931 को दो युवकों को फांसी दी गई। इसी बीच गांधी जी व अन्य नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर 4 जनवरी 1932 को संपूर्ण हड़ताल रही। तिलक भूमि तलैया पर सभा के आयोजन की रूपरेखा तय की गई। यहां पुलिस का कड़ा पहरा था। पं. द्वारका प्रसाद मिश्र ने कड़े पहरे का कारण पूछा तो अंग्रेजी सिपाहियों ने जवाब दिया कि जो भी भाषण देगा उसे गिरफ्तार कर दिया जाएगा। इस पर सेठ गोविंददास ने घोषणा कर दी कि अब भाषण नहीं होगा। इसके बाद जनवरी की ठंड में चार दिनों तक प्रदर्शनकारी खुले आसमान के नीचे बैठे रहे। तिरंगे का पूजन किया गया। बाद में सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था।

दांडी मार्च को दिया बल
इतिहासकार आरके शर्मा के अनुसार 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने डांडी मार्च प्रारंभ किया तो सेठ गोविंददास व पं द्वारका प्रसाद मिश्र ने इसके सहयोग में जागरुकता आंदोलन छेड़ दिया। वे 6 अपै्रल 1930 को रानीदुर्गावी की समाधि नरई नाला पहुंचे और प्रण किया कि जब तक पूर्ण स्वराज प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आंदोलन बंद नहीं करेंगे।अचानक ऊपर आ कूदा खूंखार तेंदुआ, डिप्टी रेंजर ने इस तरह बचाई जान

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