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घबराएं नहीं.. मालामाल भी कर देते हैं वक्री शनि, बस अपनाएं ये आसान उपाय

locationजबलपुरPublished: Apr 15, 2018 09:35:47 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

अक्षय तृतीया पर 18 अपै्रल से वक्री हो रहे हैं शनि देव, लग्न के अनुसार कई जातकों को होगा फायदा

vakri shani ke upay in hindi

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जबलपुर। नवग्रह मंडल में न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त शनि देव अक्षय तृतीया पर बुधवार 18 अपै्रल को वक्री हो रहे हैं। आम धारणा यही है कि शनि का वक्री होना खतरनाक है, लेकिन इसका अनुमान सीधे राशि से लगा लेना उचित नहीं है। ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि शनि के शुभाशुभ के उचित परिणाम को लग्न के माध्यम से ही ठीक ढंग से जाना जा सकता है। हो सकता है कि आपकी लग्न कुंडली में शनि अच्छे स्थान पर हों। उनकी दृष्टि लाभ पहुंचाने वाले या अच्छे स्थानों या ग्रहों पर हो, तो शनि के वक्री होने का परिणाम बेहतर और लाभदायक भी हो सकता है। ज्योतिषाचार्य पं. रामसंकोची गौतम के अनुसार वक्री शनि के दौरान कुछ आसान उपाय करके जातक न केवल दुष्प्रभावों से बच सकते हैं, बल्कि राज्य, समाज और धन संबंधी बड़ी सफलता भी प्राप्त कर सकते हैं।

142 दिन का समय
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला के अनुसार शनि देव नवग्रह मंडल में दंडाधिकारी व कोषाध्यक्ष पद पर आसनी हैं। धर्म के साथ पुण्य कर्म करने वालों पर उनकी दृष्टि अच्छी रहती है। जबकि, पाप कर्म करने वालों को वे दंडित करते हैं। शनि देव 18 अप्रैल को सुबह 7.20 बजे धनु राशि में वक्री होंगे और 142 दिन बाद छह सितम्बर शाम 4.40 बजे के बाद ही मार्गी होंगे। भारत वर्ष की जन्म कुंडली के आधार पर नवम भाव में शनि की पूर्ण द़ृष्टि है। इससे धन समस्याओं में बढ़ोत्तरी, रोजगार की कमी, वाद विवाद, जनता में असंतोष और देश की सीमा पर विवाद की स्थिति बनी रहेगी। इसके बावजूद हर तरफ धर्म का वातावरण रहेगा।

लग्न का रखें ध्यान
ज्योतिषाचार्य पं. अखिलेश त्रिपाठी के अनुसार शनि या अन्य ग्रह के प्रभाव को जातक की जन्म कुंडली से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। भिन्न-भिन्न लग्न के लिए वक्री शनि का अलग-अलग फल मिलता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी व्यक्तियों के लिए शनि वक्री होने पर अशुभ फल प्रदान करें। इसका फल अच्छा भी हो सकता है। जातक के लिए वक्री शनि का फल तब ही खराब होता है जब दशा में शनि का प्रभाव खराब हो और व्यक्ति विशेष की कुण्डली में भी शनि बुरे भावों का स्वामी होकर स्थित हो, अन्यथा शनि के वक्री होने का कोई खास बुरा प्रभाव नहीं होता है। कोई भी फलित पर एकदम विश्वास करने की बजाय एक बार कुंडली के किसी योग्य जानकार से विचार-विमर्श आवश्यक है।

जानिए लग्न के अनुसार वक्री शनि का फल

– मेष लग्न से शनि दशम तथा एकादश भाव का स्वामी है। इसलिए शनि मेष राशि के जातकों के लिए कार्यक्षेत्र तथा लाभ भाव का स्वामी हो जाता है, शनि के वक्री होने से आपको अपने कार्य क्षेत्र में पहले से अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं। लाभ प्राप्ति के लिए एक से अधिक बार परिश्रम करना पड़ सकता है, लेकिन सफलता अवश्य मिलेगी।

– वृष लग्न से शनि नवम तथा दशम भाव का स्वामी हो जाता है। नवम स्थान से पिता व गुरुजनों तथा दशम भाव से कार्यक्षेत्र का विचार किया जाता है। शनि के वक्री होने से शिक्षा तथा कार्यक्षेत्र में अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भाग्य साथ देने में थोडा़ अधिक समय लग सकता है, लेकिन सफलता मिल सकती है।

– मिथुन लग्न से शनि अष्टम तथा नवम भाव का स्वामी होता है। शनि के वक्री होने से भाग्य साथ देने में कंजूसी कर सकता है। अष्टमेश होने से अचानक होने वाली घटनाएं हो सकती हैं। सुख को बनाए रखने के लिए आपको अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं।

– कर्क लग्न से शनि सप्तम तथा आठवें भाव का स्वामी हो जाता है। शनि के वक्री होने से आपके प्रयास दोगुने हो सकते हैं। काम की सफलता के लिए बार-बार छोटी यात्राएं करनी पड़ सकती हैं, लेकिन कार्य में सफलता मिल सकती है।

– सिंह लग्न से शनि छठे भाव तथा सप्तम भाव का स्वामी होता है। स्थान परिवर्तन के योग बनते हैं। जीवनसाथी से विचारों में भिन्नता संभावित रहती है। धन का खर्च अधिक हो सकता है। आपको किसी कार्य को करने के लिए ऋण लेना पड़ सकता है।

– कन्या लग्न के लिए शनि पंचम भाव तथा छठे भाव का स्वामी होता है। बनते-बनते कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। छाती अथवा पेट संबंधी विकार हो सकते हैं।

– तुला राशि से शनि चतुर्थ तथा पंचम भाव के स्वामी ग्रह होते हैं। शनि के वक्री होने से आपको घर अच्छा माहौल बनाए रखने के लिए घर के वातावरण को संतुलित बनाकर रखना पड सकता है। माता के स्वास्थ्य में कमी आ सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं।

– वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय तथा चतुर्थ भाव के स्वामी बनते हैं। मित्रों तथा सहयोगियों के सुख में कमी हो सकती है। आपको गले तथा छाती से संबंधित समस्या हो सकती है।

– धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय और तृतीय भावों के स्वामी होते हैं। व्यर्थ की यात्राएं करनी पड़ सकती हैं। विचारों में भिन्नता होने से मतभेद होने की संभावना बनती है।

– मकर लग्न के लिए शनि लग्न और द्वितीय भाव के स्वामी बनते हैं। अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। कुटुम्ब में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। धन संचय के लिए अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं। बेवजह मानसिक परेशानी हो सकती है।

– कुम्भ राशि के जातकों के लिए शनि द्वादश और लग्न भाव के स्वामी होते हैं। शनि के वक्री होने से आपको मानसिक, आर्थिक तथा पारीवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आपके बनते हुए कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं। आपके खर्चें बढ़ सकते हैं। कार्यक्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

– मीन लग्न के जातकों के लिए शनि एकादश तथा द्वादश भाव का स्वामी है। खर्चें बढ़ सकते हैं। दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व की कमी रह सकती है। लाभ की प्राप्ति के लिए प्रयास दोगुने हो सकते हैं।

 

ये उपाय दिलाते हैं राहत
यदि आपकी कुंडली में शनि उचित स्थान या भाव पर नहीं है और वक्री होने की स्थिति में इसके दुष्प्रभाव संभावित हैं तो निम्न उपाय अपनाकर इन्हें कम या पूरी तरह शांत किया जा सकता है।

– यदि कुंडली में शनि शत्रु भाव में हो या उनकी दृष्टि शुभ नहीं हो तो किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर छाया यानी छाता आदि दान करें।
– एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें अपना चेहरा देखें और फिर उस कटोरे को किसी पीपल के नीचे या जलाशय के किनारे छोडकऱ वापस आ जाएं।
– हर शनिवार उड़द व काली तिली से मिश्रित जल पश्चिमाभिमुख होकर पीपल का अर्पित करें।
– शनि की शांति के लिए भगवान शिव का अभिषेक करें। भगवान शिव का नियमित पूजन करें।
– जरूरतमंदों को कंबल, वस्त्र और तेल आदि का दान करें।
– घर पर या मंदिर में सुंदरकांड के कम से कम 11 पाठ कराएं।
– रामभक्त हनुमानजी की उपासना करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
– किसी शनि मंदिर में जाकर शनि देव का तेल से अभिषेक और षोडसोपचार विधि से पूजन करें।
– शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर और चोला (वस्त्र) अर्पित करें।
– गरीबों की सेवा करें। जनहित के कार्यां में भाग लेने के साथ जरूरतमंदों की मदद करें।
– प्रत्येक शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
– प्रत्येक शनिवार दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें या शनि नील स्तोत्र का पाठ करें।
– ओम प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: या ओम शं शनैश्चराय नम: मंत्रों का प्रतिदिन एक माला जाप करें। इससे लाभ अवश्य होता है।
– महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान करें। ब्रम्हचर्य और नियमों का पालन करें। बुरी संगत से बचें।

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