सब्जी की खेती का रकबा बढ़ा, फिर भी दाम बढ़ता जा रहा, अच्छी पैदावार के बावजूद भी बनी रहती है कमी
जिले में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सालभर सब्जियों की पैदावार होती है। मौसम के हिसाब से किसान इन्हें लगाते हैं। इनकी पैदावार भी बढ़ी है। खासतौर पर प्याज, टमाटर, आलू, मटर और भाजी। इनकी फसल का रकबा बड़ा है। लेकिन, इन सब्जियों के दाम हमेशा तेज रहते हैं। अभी मेथी और चने की भाजी की बात की जाए, तो क्रमश: 40 से 80 रुपए किलो दाम है। प्याज की कीमत 60 से 70 रुपए के बीच है। आलू भी 20 से 25 रुपए किलो बिकता है। टमाटर के भाव तो आसमान छूने लगते हैं।
दूसरे जिलों में सप्लाई
कुछ सब्जियां तो स्थानीय बाजारों में कम दूसरे जिले या राज्यों में ज्यादा जाती हैं। इनमें भिंडी और मटर भी शामिल है। यह दोनों सब्जियां नागपुर और आसपास के जिलों में ज्यादा जाती हैं। इसलिए कई बार इनकी कमी से रेट तेज हो जाते हैं।
प्रसंस्करण उद्योग नहीं
जानकार रेट बढऩे का बड़ा कारण प्रसंस्करण उद्योगों की कमी को मानते हैं। यहां फसल ज्यादा होती है, तो कई बार रेट बेहद कम हो जाते हैं। प्रसंस्करण उद्योग हों तो उनमें इनसे दूसरे उत्पाद बन सकते हैं। अभी केवल मटर के दो प्रसंस्करण उद्योग जिले में हैं।
सब्जियों के उत्पादन में निश्चित रूप से वृद्धि हो रही है। सरकार टमाटर, प्याज और आलू की सब्जी को बढ़ावा दे रही है। कुछ सब्जियां बाहर जाती हैं। इसलिए शहर में उनकी कमी हो जाती है। इन सब्जियों के लिए प्रसंस्करण उद्योग जरूरी हैं। अभी मटर की दो इकाइयां लगी हैं।
एसबी सिंह, उप संचालक उद्यान
सब्जियों का उत्पादन बढ़ा है। फिर भी जिले की खपत के हिसाब से यह कम होती हैं। इसलिए कई बार कीमतें बढ़ती हैं। उद्यानिकी विभाग की सब्जी उत्पादन के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलती हैं यदि उनका लाभ छोटे किसानों को लिे तो रकबा और बढ़ जाएगा।
राजनारायण भारद्वाज, उपाध्यक्ष भारत कृषक समाज