scriptलोकसभा चुनाव 2019 : यहां की चुनावी गर्मी में कम्बल बरस रहा है, बारिश भीग रही है | Voters eyes on leaders' electoral dough | Patrika News

लोकसभा चुनाव 2019 : यहां की चुनावी गर्मी में कम्बल बरस रहा है, बारिश भीग रही है

locationजबलपुरPublished: Apr 22, 2019 07:49:18 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर लोकसभा सीट पर नेताओं की चुनावी डगर पर अभी तो है मतदाताओं की नजर

loksabha chunav

loksabha chunav

जबलपुर। नर्मदा के किनारे होने के बावजूद जलसंकट से जूझता जबलपुर शहर। वीआइपी सीट होने के बाद भी मुद्दों को तरसता जबलपुर। थक-हारकर अब विकास के मुद्दे पर बात होनी शुरू हुई है। एक सप्ताह के लगभग वोटिंग में बचे हैं, फिर भी चुनावी हलचल को तरसता जबलपुर। इन अर्थों में जबलपुर राजनीतिक मायने से एकदम अलग तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है। यहां बरसे कम्बल, भीगे पानी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। मतदातओं पर नजर रखने वाले नेता इस बार भौचक हैं। या यूं कहें कि राजनीतिक हालात उन्हें भौचक रहने पर मजबूर कर रहे हैं। हमेशा नेता गली-कूचों में मतदाताओं के रुझान पर नजर रखते थे। इस बार मतदाताओं ने अपने को बंद पिटारे में रखा है। वह खुलकर बात नहीं कर रहा है। जोर-शोर से रायशुमारी का हिस्सा नहीं बन रहा है। इससे नेताओं की समझ में नहीं आ रहा कि वे किस अंदाज में अपनी बात रखें। वे यह भी समझ नहीं पा रहे हैं कि मतदातओं के सामने मुद्दों की बात करें या अपनी बात रखें। वे यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि मतदाताओं के सुख-दुख का हिस्सा बनें या अपना सुख-दुख सामने रखें। नेताओं का असमंजस मतदाता बखूबी समझ रहा है। इसलिए उसका सयानापन साफ झलकता है। नेताजी से मिलने के बाद भी शांत रहता है। अपना दुखड़ा नहीं सुनाता। पहले नाली, बिजली, सड़क की बात करने लगता था। लेकिन, अब मैच्योर है। उसे पता है कि नेताजी पर नजर रखो। वे खुद ही अपना दर्द बयां करेंगे। अपनी बात रखेंगे। वादे करेंगे। निराकरण के लिए समय मांगेंगे।
पिछली बार भी अपने यही कहा था
जबलपुर का मतदाता मुखर हुआ है। नेताजी किसी से मिलते हैं। उससे कोई वादा करते हैं, तो वोटर तुरंत कह देता है, पिछली बार भी तो आपने यही कहा था। उसका, तो कुछ हुआ नहीं। इस बार जो कह रहे हैं, उसका क्या होगा? नेताजी आंखों ही आंखों में अपनी मजबूरी का दर्शन कराते हैं। जुबान से कुछ नहीं कहते। क्योंकि, उन्हें आभास हो चुका होता है, जुबान चली, तो दूर तलक जाएगी। इसलिए शांत रहिए। चुप रहना भी कई सवालों का जवाब होता है।
अजीब उलझन में हैं
अजीब उलझन दलबदल करने वाले स्थानीय नेताओं को लेकर है। ऐसा करने वाले नेताजी भी उलझन में हैं। उनके कार्यकर्ता भी उलझन में हैं। समर्थकों के सामने तो उलझन का अथाह सागर हिलोरें मारता है। विधानसभा में जो इधर था, आज उधर है। जो कल तक इनका गुणगान करता था, आज उनका गीत गा रहा है। फिलहाल दो बड़े नेताओं के प्रस्तावित दौरे से जबलपुर में चुनावी रंगत बनने लगी है।

ट्रेंडिंग वीडियो