महाकौशल का सियासी सबक, ऐसे समझें
आठ जिलों और 38 विधानसभा सीटों वाले नर्मदा के कछार महाकौशल में नगरीय निकाय के चुनाव के परिणाम कमोबेश 2018 के विधानसभा चुनाव जैसे ही हैं। यहां तीन निगम मुट्ठी से रेत की तरह भाजपा के हाथ से निकल गए। भाजपा ने कई रणनीतिक चूक की और सत्ता विरोधी रुझान भांपने में नाकाम रही।
रही-सही कसर प्रत्याशी चयन के संशय ने पूरी कर दी। 18 साल से जबलपुर के नगर निगम में मजबूत कब्जे के बाद भी प्रत्याशी चयन में चूक ने दावेदारों के असंतोष को हवा दे दी। ऐसी ही गलती छिंदवाड़ा नगर निगम में की जहां से कुछ समय पहले वीआरएस लेकर पार्टी में आए नगर निगम अधिकारी को उतार दिया।
भाजपा के लिए सबसे अधिक सकते में डालने वाली हार कटनी निगम में मिली यह क्षेत्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। शर्मा और पूर्व मंत्री संजय पाठक की पसंद पर युवा महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा, लेकिन दांव उल्टा पड़ा और बागी ने पटखनी दे दी। तीनों ही नगर निगम में जनता के मूड और कार्यकर्ताओं के मन की बात समझने में भाजपा नाकामयाब रही। कांग्रेस के लिए जो माकूल स्थिति खुद के दमदार होने से नहीं, बल्कि भाजपा की कमजोरियों की वजह से बनी।
भाजपा के लिए यह खुशी का विषय हो सकता है कि महाकौशल के अधिकतर नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में उसके पार्षद बड़ी संख्या में जीते हैं और वह इन जगहों पर अपने अध्यक्ष व बोर्ड बनाने में कामयाब हो सकती है लेकिन जो पार्टी के भीतर अंतर्द्वंद बढ़ा हुआ है यह भाजपा के आने वाले दिनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।
2018 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह की बगावत महाकौशल में देखने को मिली, इससे पहले ऐसे हालात कभी नहीं बने। इन दोनों दलों के लिए जो सबसे अधिक सकते में डालने वाली बात है वह है एआइएमआइएम और आम आदमी पार्टी की एंट्री कुछ पार्षद सीटों को जीतने की संख्या से अगर परे सोचें तो जिस तरह के वोट उन्होंने बांटे उसने भी भाजपा और कांग्रेस के बीच जीत हार के अंतर में एक बड़ी भूमिका अदा की। इन परिणामों ने 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
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