6 से 10 लाख के न्यारे ब्यारे सूत्रों के अनुसार शहर में सीबीएसई स्कूलों की संख्या करीब 35 है। इन सभी स्कूलों द्वारा निजी और महंगे प्रकाशकों की किताबों को लगाया जा रहा है। हर स्कूल का प्रकाशक के साथ मोटी कमीशन बधा होता है। यह कमीशन स्कूल में पढऩे वाले छात्रों की संख्या के अनुसार निर्भर करता है। कमीशन 25 से 35 फीसदी तक होता है। औसतन शहर का हरेक स्कूल हर साल सीजन में 6 से 10 लाख रुपए की कमाई किताब-कापियों के नाम पर करता है।
हजारों की संख्या में स्कूलों में छात्र सेंट्रल बोर्ड ऑफ एजुकेशन से जुडे शहर के स्कूलों में 1000 से लेकर 2500 तक छात्र पढ़ रहे हैं। इस तरह छात्रों की संख्या करीब 50 हजार के आसपास बताई जाती है। कुछ बड़े स्कूल पेंटीनाका, नौदराब्रिज, सदर, ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, दमोहनका, विजय नगर जैसे क्षेत्रों में संचालित हैं। निजी पब्लीशर्स भी एेसे स्कूलों की छात्र संख्या के आधार पर वजनदारी तय करते हैं और इसके आधार पर कमीशन का पैकेज के साथ फॉरेन टूर प्रोग्राम का प्रलोभन देते हैं।
कमीशन की कमाई एशोआराम पर खर्च स्कूलों में किताब कापियों, फीस के नाम पर ली जाने वाली फीस स्कूलों द्वारा अपने एशोआराम में खर्च की जाती है। भले ही स्कूलों में छात्रों की कक्षाओं में स्मार्ट क्लास, स्मार्ट रूम, ड्रिकिंग वॉटर, प्रेक्टिकल अपरेटस, योग्य फैकेल्टी न हो लेकिन स्कूलों में प्राचार्यों के कक्षों में एयर कंडीशनंड, बिग टीवी स्क्रीन, दो से तीन फोन, गलीचा, वीआईपी सोफासेट के अलावा गेट पर पहरेदारी के लिए दरबान जरूर नजर आएंगे।
पढ़ाई का ढोंग, सुविधाएं रत्ती भर नहीं शानदार पढ़ाई का ढोंग बताने वाले स्कूलों में सुविधाएं रत्ती भर भी नहीं हैं। न तो ट्रेंड स्टाफ है न ही क्वालिटी एजुकेशन। जबकि कमीशन की आड़ में साइंस, मेथ्स, फिजिक्स की मोटी-मोटी महंगी किताबों को कक्षाओं में लगाया गया है। किताबों को देखकर कई बार अभिभावक भी मुश्किल में पड़ जाते हैं कि क्या वाकई में बच्चों को इस स्टेण्डर्ड के साथ पढ़ाया जा रहा है।
फैक्ट फाइल -54 सीबीएसई स्कूल -70 हजार छात्र-16 करोड़ का व्यापार -25 से 35 फीसदी तक कमीशन -6 से 10 लाख हर स्कूल की कमाई -1000से 2500 तक स्कूलों में स्ट्रेंथ
-4500 तक किताब कापियों का खर्च वर्जन -स्कूलों में अब शिक्षा बिजनिस बन गया है। यही वजह है कि बड़े स्कूल सबसे ज्यादा लूट खसोट करने में लगे हैं। शासन, प्रशासन, शिक्षा विभाग को रूल्स रेगुलेशन बनाना चाहिए।
-प्रशांत सैनी, अभिभावक …….. -हमारे समय में दौसो- तीन सौ रुपए में साल भर की किताब कापियां आ जाती थी। आज तीन हजार रुपए भी कम पड़ रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी बच्चों का आई क्यू उसी स्तर का है।
-प्रियंक तिवारी, अभिभावक ……. -स्कूलों क्वॉलिटी एजुकेशन बचा ही नहीं है। लेकिन किताब कापियां एेसी लगाई जा रही हैं कि बच्चे आईंस्टीन बनकर निकलेंगे। इसे शासन को चैक करने की जरूरत है।
-जागृति साहू, अभिभावक ……
-स्कूलों द्वारा बरती जा रही लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जिन स्कूलों ने जो सूची कार्यालय में जमा की है उसी के अनुरुप किताबें लगाई जाएं। टीम गठित कर एेसे स्कूलों की सख्ती से जांच कराई जाएगी।
-सुनील नेमा, जिला शिक्षा अधिकारी