इमरती को स्वच्छ बनाने वालों संगठन के लोगों ने सामूहिक रूप से संस्कारधानी के अन्य जलस्रोतों के संरक्षण में अपने दायित्व का निर्वहन करने का संकल्प लिया। सबने कहा जल है तो कल है। इमरती तालाब से प्लॉस्टर ऑफ पेरिस की छोटी-छोटी प्रतिमाएं भी मिली। युवकों ने प्रतिमाओं को कचरे के ढेर से अलग कर पेड़ के पास रखा।
अंजू लता गुप्ता ने कहा कि महीनों पहले विसर्जित की गई प्रतिमाएं, अब भी वैसी ही है, जल सरोवरों में इस तरह विसर्जन नहीं होना चाहिए। केवल कृष्ण आहूजा ने कहा तालाबों को हमारे धर्म में देवताओं की उपाधि दी गई है। इसके बावजूद उनकी यह दुर्दशा हो रही है।
पानी पीते थे लोग
गाढ़ा निवासी राम कुमार ने बताया कि इमरती तालाब गढ़ा के अंदर होने से बहुत उपयोगी था। कई एकड़ में फैले तालाब का पानी कंचन था। आसपास खेत और बस्ती हुआ करती थी। गांवों से बैलगाड़ी, तांगों व अन्य संसाधनों से गढ़ा और जबलपुर शहर आने वाले किसान इसी तालाब के आसपास पड़ाव डालते थे। खाना बनाने के साथ इसका पानी भी पीते थे। तीन दशक पहले अतिक्रमण, अराजक बसाहट की होड़ और प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा ने ऐतिहासिक इमरती तालाब के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया। इसे बचाया जाना चाहिए।