scriptहम इंतजार करेंगे टिकट मिलने तक | We wait till the get tickets | Patrika News

हम इंतजार करेंगे टिकट मिलने तक

locationजबलपुरPublished: Mar 17, 2019 08:02:32 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर शहर में प्रमुख नेताओं ने ठोंकी ताल

EVM machines used in assembly elections will be used in Lok Sabha elec

EVM machines used in assembly elections will be used in Lok Sabha elec

जबलपुर। लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों को बंटवारा शुरू हो गया है। इसके साथ ही जबलपुर शहर के नेताओं ने ताल ठोंक दी है। अभी के हालात में हर कोई अपने को ही उम्मीदवार मान रहा है। सभी नेता अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि चिंता मत करो, टिकट अपने ही खाते में आएगा। जबकि, अंदरखाने कुछ और चल रहा है। नेताओं को भी पता है कि वे कितने कद्दावर हैं। इसलिए वे समर्थकों के सामने उत्साह दिखाते हैं। जोश भी भरपूर चेहरे पर नजर आता है। लेकिन, शाम को चिंतन करते हैं, तो खास सिपाहियों से कहते हैं कि टिकट के लिए तब तक इंतजार ही करना है, जब तक मिल न जाए। लेकिन, माहौल बनाए रखना जरूरी है।
भाजपा का गढ़, कांग्रेस का उत्साह
जबलपुर सीट फिलहाल भाजपा के सुरक्षित गढ़ के रूप में मानी जाती है। राकेश सिंह तीन बार से बेहद आसानी से चुनाव जीतते आ रहे हैं। लेकिन, इस बार विधानसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन करने के बाद कांग्रेस भी उत्साह में है। उसके कार्यकर्ता कह रहे हैं कि इस बार बदलाव की बयार। वहीं, भाजपा का कहना है कि फिर से भाजपा का वार। ऐसे में यहां उत्साह और आत्मविश्वास का माहौल है। भाजपा में आत्मविश्वास है। कांग्रेस में उत्साह है। दोनों को लय में आने के लिए बड़े नेताओं के साथ की जरूरत है। दोनों दलों में फूफाजी हैं। ऐन मौके पर रूठ जाने पर तो उनका पेटेंट है। इस बार भी वे मैदान में हैं। यह अलग बात है कि राजनीति के फूफाजी भी शादियों के फूफाजी वाली ही हैसियत रखते हैं। मतलब फूफाजी रूठेंगे। कुछ देर बाद मानेंगे भी जरूर।
बड़े नाम वाले
जबलपुर सीट पर टिकट का दावा ठोंकने वाले अपने को बड़े नाम वाला मानते हैं। वे अपने को कामवाला भी कहते हैं। चौक-चौराहे पर खड़े होकर अपने किए 100 काम एक सांस में गिना सकते हैं। लेकिन, यह नहीं बता पाते कि आखिर उन्होंने काम अपनी जेब से किया है या सरकारी खजाने से। कहने का मतलब यह है कि शहर में नेताओं को इस बात की चिंता रहती है कि उनका नाम अखबारों में छपता रहे। टीवी पर उनका चेहरा दिखता रहे। कॉफी हाउस, कम चलने वाली दुकानों पर बुद्धिजीवियों का जमावड़ा रोज कई लोगों को टिकट बंटवा देता है। जबकि, कामगारों के चौक पर धुएं का गुबार फूटता है, तो उस दिन काम नहीं पाने वाला सबसे बड़ा राजनीतिक विश्लेषक हो जाता है। वह अपने भइया को उंगलियों पर वोट गिनकर जिता देता है। अब यह अलग बात है कि टिकट का बंटवारा भी अभी नहीं हुआ है।

ट्रेंडिंग वीडियो