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इस गांव में मन्नतें पूरी करता है बकरा, साल में दो बार लगता है मेला

locationजबलपुरPublished: Jan 09, 2018 10:03:38 am

Submitted by:

Lalit kostha

साल में दो बार यहां बकरा देव का मेला भी लगता है। यहां मन्नतों के मेले में दूर दूर से लोग पूजन दर्शन को आते हैं

weird tradition in india worship goat temple

weird tradition in india worship goat temple

जबलपुर। भारत देश को विविधताओं और पग पग पर बदलती परंपराओं के रंगों से जाना जाता है। यहां भाषा, बोली और परंपरा हर किलोमीटर पर बदली नजर आती है। बावजूद इसके लोग यहां प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं। मप्र में भी कई लोग रंग, मान्यताएं देखी जा सकती हैं। इसी कड़ी में हम आपको यहां एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पहले कभी आपने देखा सुना नहीं होगा। इस मंदिर की खासियत है कि यहां कोई देवी देवता नहीं बल्कि एक बकरे की पूजा की जाती है। यही नहीं बकायदा साल में दो बार यहां बकरा देव का मेला भी लगता है। यहां मन्नतों के मेले में दूर दूर से लोग पूजन दर्शन को आते हैं।
कटनी जिले में एक ऐसा भी गांव है जहां बकरे की बकायदा प्रतिमा स्थापित कर उसकी पूजा की जाती है और लोग उससे खुशहाली की कामना भी करते हैं। चैत्र नवरात्र पर जहां मंदिरों और देवालों में शक्ति की उपासना में लोग लीन रहे तो वहीं प्रतिदिन इस गांव में बकरे की पूजा की गई। इस गांव में मां ज्वालामुखी के अंश के रूप में बकरे की पूजा हो रही है। यह प्रदेश का एक मात्र बकरा मंदिर है, जहां पर इसकी पूजा हो रही है।

यह है रोहनिया गांव
कटनी जिले की बड़वारा तहसील अंतर्गत स्थित है ग्राम रोहनिया। जहां पर मां ज्वाला मुखी को 13 वर्ष पूर्व अर्पित किए गए बकरे की मौत होने के बाद उसे गांव के बगीचे में न सिर्फ गांव वालों ने दफनाया है, बल्कि उसका स्मारक बनाकर प्रतिमा भी स्थापित की है। हैरत की बात तो यह है कि जंगल से विचरण करने के बाद घर पहुंचने वाली बकरियां एकबार चबूतरे के ईर्द-गिर्द चक्कर भी काटती हैं।
13 वर्ष पूर्व दी थी भेंट
जानकारी के अनुसार ग्राम रोहनिया निवासी सोहन कचेर द्वारा 13 वर्ष पूर्व गांव व परिवार में आए संकट पर मां ज्वाला मुखी की विशेष पूजा की गई थी। इस दौरान पंडा द्वारा मां गांव व क्षेत्र की खुशहाली के लिए मां को बकरे की भेंट सौंपी गई थी। 13 वर्षों तक लगातार बकरा गांव में स्वछंद विचरण करता रहा। दो वर्ष पूर्व उसकी मौत के बाद उसे सड़क किनारे स्थित बगीचे में दफनाकर उसकी प्रतिमा बनवाई गई है और दो वर्ष से पूजा की जा रही है।
कायम है परंपरा
रोहनिया क्षेत्र निवासी अर्जुन बनारसी, तेजनिया बाई, इत्तराम, दिवाक और शिव प्रसाद तोमर ने बताया कि दो वर्ष से बकरे के पूजन की परम्परा आज भी कायम है। चबूतरा का निर्माण कराते हुए उसमें उसी के आकार, रंग-रूप की प्रतिमा स्थापित की गई है। नवरात्र में जब मां की विशेष पूजा होती है तो साल में दो बार बकरे के पूजन के लिए भी पंडा सोहन के साथ लोग पूजन को पहुंचते हैं और गांव की खुशहाली बनाए रखने कामना करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बहुत पहले साल में पूर्वज बकरे की बलि दिया करते थे, लेकिन अब लोग उसे खुला छोड़ते हैं। नारियल, गुड़, प्रसाद के साथ रोट आदि चढ़ाई जाती है।
करते हैं परिवार की रक्षा
शिवनाथ प्रसाद तोमर ने बताया कि बकरा पूरे समय गांव में घूमता था, लेकिन कभी भी किसी को क्षति नहीं पहुंचाई। कई बार तो वह जंगल में तेंदुआं सहित अन्य जंगली जानवरों को मात देकर घर आ गया है, जिसका चरवाहे प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। परिवार और क्षेत्र की रक्षा के लिए ही मां के साथ-साथ बकरे की पूजा की जाती है। बुजुर्गों के अनुसार अब स्थितियां बदल गई हैं। इसके बाद भी समाज बकरे की पूजा करता है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश का यह एक मात्र बकरा मंदिर है, जहां पर इसकी पूजा होती है।
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