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ऐसा क्या हो गया कि इस बार दूल्हा नहीं बनेंगी महिलाएं

locationजबलपुरPublished: Mar 14, 2019 01:17:54 am

Submitted by:

shyam bihari

होली की पूर्व संध्या पर शहीद स्मारक में होगा महोत्सव

ऐसा क्या हो गया कि इस बार दूल्हा नहीं बनेंगी महिलाएं

holi

जबलपुर। होली पर्व में संस्कारधानी की अनूठी सामाजिक सांस्कृतिक परम्परा ‘रसरंग महोत्सवÓ में इस बार लोग दूल्हा नहीं बनेंगे। 26 साल से आयोजित हो रहे रसरंग महोत्सव में पहली बार ऐसा होगा। पुलवामा के आतंकवादी हमले से व्यथित आयोजकों ने यह निर्णय लिया है। गुंजन कला सदन के तत्वावधान में होली की पूर्व संध्या पर 20 मार्च को शहीद स्मारक गोल बाजार में तिलक, माल्यार्पण और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। आपसी प्रेम और सद्भाव के साथ लोग एक-दूसरे से गले मिलकर बधाइयां देंगे।
रसरंग महोत्सव में पुरुष-महिलाएं और किन्नर सभी को दूल्हा के वेश में कार्यक्रम में शामिल करने की परम्परा रही है। वर्ष 1958 में गठिन गुंजन कला सदन के सदस्यों ने 16 वर्ष पहले रसरंग महोत्सव की शुरुआत की। शहर ही नहीं बल्कि मप्र के दूसरों शहरों के लोग भी रसरंग महोत्सव देखने के लिए मेहमान बनकर आते हैं।
20 वर्ष तक निकाली गई रसरंग बारात
शहर के वरिष्ठ साहित्यकार प्रतुल श्रीवास्तव ने बताया, होली बुराई से अच्छाई को ग्रहण करने का पर्व है। उस दौर में असामाजिक तत्वों के कारण होली का स्वरूप विकृत होने लगा था। उसके बाद पदाधिकारियों आनंद तिवारी, जयप्रकाश माहेश्वरी, प्रतुल श्रीवास्तव, राजेंद्र साहू, विजय तिवारी, सुरेश सराफ, रवि गुप्ता, नरेंद्र जैन, मधु यादव ने रसरंग बारात की शुरुआत की। संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव और संरक्षक डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव की कल्पना साकार हुई तो महोत्सव की लोकप्रियता बढ़ती गई। तत्कालीन राज्यसभा सांसद रत्न कुमारी देवी की अगुवाई में आधी आबादी ने भी पूरी भागीदारी निभाई। शहर की सुविधाओं को देखते हुए रसरंग बारात को रसरंग महोत्सव का स्वरूप दिया गया। दो साल ड्रीमलैंड फनपार्क में आयोजन हुआ। चार साल से शहीद स्मारक में कार्यक्रम आयोजित हो रहा है। इस बार का आयोजन प्रांतीय अध्यक्ष आनंद तिवारी की माता रेवारानी तिवारी को समर्पित होगा।
एक ही वाहन में बैठते थे सभी पार्टी के नेता
रसरंग बारात की एक बग्घी नेताओं के लिए आरक्षित होती थी, इसमें मंच से एक-दूसरे को निशाना बनाने वाले नेता बाबूराव परांजपे, ओंकार प्रसाद तिवारी, ईश्वरदास रोहाणी, नरेश सराफ आदि एक ही बग्गी में सवार होकर रंग-गुलाल और प्रेमभाव के साथ चलते थे। इस बारात में गदहों की सवारी भी विशेष आकर्षण का केंद्र था। बुजुर्गों में अब भी इस अनूठी बारात की चर्चा होती है।
दिखेगी आंचलिक होली की झलक
रसरंग महोत्सव में देश के विभिन्न अंचलों की होली की सांस्कृतिक झलक दिखेगी। कत्थक कला केंद्र के मोती शिवहरे के निर्देशन में नृत्यांगनाओं की टोली बुंदेलखंडी, बृज की होली, छत्तीसगढ़ी, पंजाबी सहित अन्य अंचलों के होली गीतों पर प्रस्तुति की जाएगी। शहीदों के प्रति देशभक्ति गीतों पर नृत्यांजलि होगी।

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