scriptआखिर क्यों जबलपुर मांग रहा है इंदौर मॉडल | Why Jabalpur is seeking Indore model | Patrika News

आखिर क्यों जबलपुर मांग रहा है इंदौर मॉडल

locationजबलपुरPublished: Jul 28, 2019 02:01:17 am

Submitted by:

shyam bihari

वेस्ट टू एनर्जी प्लांट होने के बावजूद जबलपुर सफाई में फिसड्डी

jaipur

kachara

जबलपुर। इंदौर नगर निगम ने देशी मॉडल अपनाया, क्षेत्रवार कचरा प्रबंधन किया, ठेका व्यवस्था के बजाय अपने संसाधनों पर जोर लगाया और आज इंदौर शहर स्वच्छता में तीन साल से नंबर 1 है। कचरे से जल, वायु, मिट्टी तीनों प्रकार का प्रदूषण होता है ये बताकर इंदौर नगर निगम ने कचरा प्रबंधन को जन आंदोलन बनाया। इधर एशिया का बेस्ट वेस्ट टू एनर्जी प्लांट होने का ढिंढोरा पीटने वाला जबलपुर नगर निगम सफाई में फिसड्डी होता गया। कमीशनखोरी के चक्कर में कचरा संग्रहण से लेकर परिवहन की बागडोर निजी हाथों में सौंप दी। नतीजतन शहर के ज्यादातर क्षेत्रों में कचरे का ढेर लगा रहता है और वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में कचरे के लाले पड़ रहे हैं।
ऐसे बदली इंदौरवासियों की आदत
इंदौर निगम के मेयर, कमिश्नर से लेकर सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी रोजाना सफाई व्यवस्था को बेहतर करने के लिए मैदान में उतरे। शहरवासियों में विश्वास जगा की शहर को साफ सुथरा बनाया जा सकता है। उन्हें बताया गया की कचरा वायरस से लेकर बीमारियों का कारण है। कचरा संग्रहण व बेहतर ढंग से निबटारण वर्तमान पीढ़ी से लेकर भविष्य के लिए आवश्यक है। स्वयं सेवी संगठनों के कार्यकर्ताओं को रोजाना हर घर भेजा गया। उच्च शिक्षित युवा घरों में जाकर लोगों के हाथ से कचरा ले लेते व उनसे कचरा अलग-अलग श्रेणी में रखने कहते हैं। स्वच्छता को लेकर जागरुकता में राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक शक्ति व व्यवस्था में सुधार का भाव महत्वपूर्ण रहा।
किसकी कैसी भागीदारी
नगर निगम कमिश्नर व सभी संभागीय अधिकारी सुबह 6 से 9 फील्ड पर रहने लगे। इससे सफाई व्यवस्था तो दुरुस्त हुई ही, उन्हें शहर की अन्य समस्याएं भी आसानी से पता लगने लगीं व उनका निराकरण आसान हुआ। रात 8 से 10 सभी विभागों के प्रमुख अधिकारी वार्डों में दौरे कर सफाई की बागडोर संभालते हैं। उनके अलावा सभी विभागों के इंजीनियर व अन्य प्रमुख अधिकारी भी फील्ड पर रहते हैं। इस प्रकार से पूर चैनल काम करता है।
लोगों ने खुद ही ले ली जिम्मेदारी
इंदौरवासियों ने जब देखा की नेताओं से लेकर प्रशासनिक अधिकारी सभी शहर को साफ सुथरा बनाने पूरी ताकत झोंक रहे हैं तो वे भी पीछे नहीं रहे। शहरवासियों की आदतों में बदलाव लाने निगम के अधिकारी खुद हुए गंभीर, रोजाना सुबह-रात मैदान पर उतरे। वे नगर के लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। ऐसे में नगर के लोग अपने आंगन से लेकर सड़क, गली, मोहल्लों को साफ सुथरा बनाने में सहभागिता करने लगे। इतना ही नहीं सब्जी, चाट-खामेचे वालों ने भी अपनी डस्टबिन रखना शुरू कर दिया और दूसरों को भी कचरा फैलाने से रोकने लगे।
दोनों के मॉडल में ये है अंतर
इंदौर म्युनिसिपल कार्पोरेशन- जबलपुर म्युनिसिपल कार्पोरेशन
कचरा संग्रहण, परिवहन, प्रोसेसिंग निगम कर्मियों के हाथ में- ज्यादातर व्यवस्थाएं निजी हाथों में
कचरा प्रबंधन व प्रोसेसिंग क्षेत्रवार छोटी यूनिटों में – सेंट्रलाइज वेस्ट टू एनर्जी प्लांट कठौंदा पर निर्भर
कचरा का विभक्तिकरण पांच श्रेणी में – केवल दो श्रेणी गीला व सूखा कचरा
कचरा प्रोसेसिंग पांच श्रेणी में-एक ही श्रेणी में कचरा प्रोसेसिंग
निगम के सभी प्रमुख अधिकारियों के सुबह व रात पांच घंटे मैदानी दौरे-निगम के स्वास्थ्य विभाग पर निर्भरता
-होटल, रेस्टोरेंट जैसे बड़े उत्पादकों के लिए कचरा विभक्तिकरण अनिवार्य किया-कोई सख्ती नहीं बरती गई
-होम व कम्युनिटी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा दिया-केवल कागजों में ही बनीं योजनाएं
-अधिकारियों-कर्मचारियों को बेहतर ट्रेनिंग दी-इस दिशा में नहीं हुए ठोस प्रयास
-पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सेक्टरवार चलाया अभियान-हर व्यवस्था पूरे शहर में एक साथ लागू की
-टोल फ्र ी नंबर व अन्य संपर्क नंबर जारी किए-ऐसी कोई व्यवस्था लागू नहीं
-कचरा विभक्तिकरण से 25 से 30 करोड़ बचा रहे-एक ही स्थान पर ले जा रहे पूरा कचरा
-विदेशी तकनीक का कोई इस्तेमाल नहीं-पूरी तरह से विदेशी तकनीक पर आधारित है वेस्ट टू एनर्जी प्लांट
-शहरवासियों के अनुकूल प्लानिंग-निगम की सुविधा अनुसार सफाई की प्लानिंग
-स्वच्छता के क्षेत्र में काम कर रही कं पनियों के दबाव में नहीं आए-प्लांट स्थापना से लेकर आरएफआईडी चिप के मामले में कं पनियों के झमेले में फं सते गए
ढाई रुपये किलो खरीद रहे कचरा
इंदौर नगर निगम ने शहरवासियों से ठोस कचरा ढाई रुपये किलो खरीदने की शुरुआत की है। जिससे घरों में पड़ा कचरा भी निकाला जा सके।
यहां बंद होने की कगार पर प्लांट
कचरे से बिजली बनाने वाले कठौंदा स्थित प्लांट को भी नगर निगम पर्याप्त कचरा उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। रोजाना 150 टन कचरा कम मिल रहा है। ऐसे में प्लांट पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। सूत्र तो यहां तक बताते हैं की इस प्लांट को विदेशी कं पनी को बेंचने की कवायद शुरू हो गई है। बताया जा जाता है की ऐस्सेल समूह ने इंदौर में भी वेस्ट टू एनर्जी प्लांट की स्थापना के लिए संपर्क साधा था, लेकिन आईएमसी से इसे स्वीकृति नहीं दी थी।

इंदौर नगर निगम ने अपने संसाधनों पर भरोसा जताया उन्हें और सशक्त किया, कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी। निगमायुक्त से लेकर संभागीय अधिकारी व सभी विभागों के प्रमुख अधिकारी मैदान पर उतरे निगरानी बेहतर की। इससे सफाई व्यवस्था में सुधार हुआ। नगरवासियों का भरोसा जीता तो वे भी सफाई कार्य में सहभागी बन गए। कचरा प्रबंधन को सेंट्रलाइज्ड करने के बजाय क्षेत्रवार किया।
अरशद बारसी, कनसल्टेंट, इंदौर, नगर निगम
इंदौर के मुकाबले हमारे पास मशीनरी व कर्मचारी कम हैं। इसके कारण यहां ठेका व्यवस्था लागू की। लेकिन इंदौर नगर निगम की जो भी अच्छी पहल की हैं अनुकरण करेंगे। निगमायुक्त को निर्देशित किया है की सभी विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए।
स्वाति गोडबोले, महापौर
नगर सत्ता ने मनमाने तरीके से वेस्ट टू एनर्जी प्लांट स्थापित किया। सफाई ठेके के मामले में प्रशासनिक अधिकारियों ने भी मनमानी की। निगम के अधिकारियों ने भी स्वच्छता से लेकर अन्य मामले में स्वयं सीखने के बजाय ज्यादातर व्यवस्थाएं ठेके पर दे दीं। जिसका खामियाजा शहर भुगत रहा है।
विनय सक्सेना, विधायक
नगर सत्ता से लेकर निगम के अधिकारियों ने शहर को सफाई में नंबर 1 बनाने प्रयास किए ही नहीं। दरअसल यहां कमीशन का खेल चल रहा है। यही वजह है की स्वच्छता में जबलपुर लगातार फिसड्डी रह रहा है।
राजेश सोनकर, नेता प्रतिपक्ष
स्वच्छता के क्षेत्र में इंदौर ने जो भी ठोस कदम उठाए हैं, उन्हें यहां भी लागू करने आवश्यक कदम उठाएंगे। प्रशासनिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण इसी दिशा में किया गया प्रयास है।
आशीष कुमार, निगमायुक्त

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