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इस देवी को लगता है बासा खाने का भोग, शरीर से जुड़ी बीमारी कर देती हैं दूर

locationजबलपुरPublished: Mar 27, 2019 01:22:50 pm

Submitted by:

santosh singh

इस देवी को लगता है बासा खाने का भोग, शरीर से जुड़ी बीमारी कर देती हैं दूर

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Wonderful story of maa Sheetala

जबलपुर । शीतला सप्तमी की अद्भुत गाथा है मान्यता है कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी पर माँ शीतला की अनन्य कृपा पाने के लिए माताएं एवं बहने माँ शीतला का व्रत एवं पूजन कर माँ को ठंडा एवं बासी भोग अर्पित करती है | माँ शीतला के मंदिर हर नगर एवं गाँव में विद्यमान है जहाँ अर्ध रात्रि से ही महिलाओं की भीड़ गदर्भ पर विराजमान माँ शीतला की पूजन को एकत्रित हो जाती है | माँ शीतला के नैवेद्य में मीठी पूरी एवं चावल का भोग लगाया जाता है एवं सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता | माँ शीतला रोगों का नाश करने वाली परम दयालु है, चेचक के रोग में भी माँ के आशीष से ही शीतलता प्राप्त होती है |

शीतला सप्तमी की कथा :

एक गाँव में एक बूढी माँ व उसकी दो बहुओं ने शीतला सप्तमी के दिन माँ का पावन व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था। लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई।

उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले। जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई। वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये। इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा।

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