जबलपुरPublished: Mar 16, 2019 08:12:03 pm
shyam bihari
लोकसभा चुनाव के लिए जबलपुर में भी बिछने लगी जीत-हार की बिसात
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जबलपुर। राजनीति की तासीर जबलपुर की भी देश के बाकी हिस्सों से मिलती-जुलती है। यहां थोड़ा सा अलग यह है कि रूठने-मनाने का खेल नजाकत से नहीं होता। साफ पता चल जाता है कि सामने वाला मजबूरी में मनाने आया है। मनाने वाला भी पहले से समझता रहता है कि उसके मनाने का वार खाली नहीं जाएगा। लेकिन, राजनीतिक मजबूरी है कि दोनों मुख्य दलों में रूठने-मनाने का खेल चलता रहता है।
अभी जिले के एक कांग्रेसी ने अपने ही विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका लगा दी। उनका रोना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें नामांकन फॉर्म भरने से साजिशन रोका गया था। जिन माननीय का वे विरोध कर रहे हैं, उनके चेहरे पर किसी तरह की शिकन नहीं है। वे तो खुश हैं कि लम्बे संघर्ष के बद उन्होंने जीत का स्वादा चखा है। फिलहाल रूठने वाले नेताजी को पार्टी से बाहर करने की बात कही जाने लगी तो, उन्हें ठहाका लगाते हुए कहा-किसने बाहर किया है, उन्हें नहीं मालूम। लेकिन, इतना मालूम है कि उन्हें तो खुद मुख्यमंत्री जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। गजब का ट्विस्ट है। पार्टी से निकालने वाले कॉन्फीडेंट हैं। निकाला जाने वाला मानने को तैयार नहीं कि उसे निकाला गया है। फिलहाल दोनों पक्ष अभिनेताओं को मात दे रहे हैं। रूठने वाला गुस्से में नहीं है। मनाने वाला गम्भीर नहीं है। दोनों की ओर से औपचारिकताएं जारी हैं। राजनीति दौड़ रही है। समर्थक मौन हैं। पदाधिकारी शांत हैं।
भाजपा विधानसभा चुनाव के बाद थोड़ा परेशान है। उस दौरान जिन्हें जीतने की उम्मीद थी, वे हार गए। जिन्हें लगता था कि हार सकते हैं, वे जीत गए। हारने वाले एक नेताजी ने भरी सभा में आरोप लगाया कि पार्टी के युवा संगठन के मुखिया ने उन्हें हरवा दिया था। इस आरोप के बाद पार्टी में थोड़ी देर के लिए हलचल मची। रूठने-मनाने का सिलसिला चल पड़ा। रूठकर आरोप लगाने वाले नेताजी गुस्से में हैं। आरोप झेलने वाले भड़के हुए हैं। ये नेताजी पिछली बार भी हारे थे। तब उन्हें किसी और ने हरवाया था। इसलिए इस बार का आरोप झेलने वाले ने कहना शुरू कर दिया कि खुद में तो दम था नहीं, हार गए तो खीझ उतार रहे हैं। फिर भी ये सब अनुशासित पार्टी के नेता, कार्यकर्ता, समर्थक हैं। इसलिए सीमा में रहकर गुस्सा भी करते हैं। आरोप भी दायरे में लगाते हैं। आरोपों को शंकर भगवान की तरह पी भी जाते हैं। इसलिए यहां भी रूठने-मनाने का सिलसिला चालू है।
दूसरे प्रदेशों में ऐसे हालातों में नेताजी नजाकत से रूठते। मनाने वाले भी मना लेते और सामने वाले को पता नहीं चलता। लेकिन, यहां तो खुला खेल फरोखाबादी है। नाराज हैं, तो बताएंगे कि नाराज हैं। मनाने जाएंगे तो कह देंगे कि बड्डे मनाने आए हैं। मान जाओ तो ठीक है। वरना फिर मनाने आएंगे। यह दावा नहीं करेंगे कि फिर से नाराज नहीं करेंगे। लेकिन, यह जरूर कहेंगे कि यह सब राजनीति है। यहां तो सब ऐसे ही चलता है।