come for help- ये लड़की कर रही बच्चों के लिए ऐसा काम, हर कोई करता है इनको सलाम- see video
कम फॉर हेल्प - विधि-विवादित बच्चों को जोडऩे की कोशिश

जबलपुर. मानस भवन ऑडीटोरियम में गुरुवार को एक कार्यक्रम के दौरान जब ग्यारह बच्चों की एक टीम ने देशभक्ति गीतों के रिमिक्स संगीत पर नृत्य किया, तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। ये वो बच्चे थे, जो बाल संप्रेक्षण गृह में सुधार के लिए रखे गए हैं। समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए इन बच्चों को प्रशिक्षित करने का बीड़़ा उठाया है नगर की युवा अधिवक्ता अवनि नगरिया ने। इसके अलावा वे अब तक शहर की झुग्गी बस्तियों के सैकड़ों बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा दे चुकी हैं।
अवनि बताती हैं कि कानून की पढ़ाई के दौरान बाल कानून व उससे जुड़े पहलुओं के अध्ययन ने उनके मनोमानस को झकझोर दिया। इसलिए एलएलबी करने के बाद उनका मन अधिक दिन वकालत में नहीं लगा। वे बाल व मानवाधिकार कानून में डिप्लोमा लेने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चली गईं। वहां से पढ़कर लौटने के बाद वे समाज की मुख्यधारा और शिक्षा की रोशनी से दूर बच्चों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने के अपने मिशन में जुट गईं। विधि विवादित, उपेक्षित व कमजोर तबके के बच्चों में शिक्षा व आत्मविश्वास की रोशनी फैलाना उनका जुनून है। उनका अधिकांश खाली वक्त एेसे बच्चों के बीच झुग्गी बस्तियों में उन्हें पढ़ाने व विभिन्न रोजगारपरक कार्यों का प्रशिक्षण देने में बीतता है।
४८ की उम्र में ८४वीं बार किया रक्तदान
देशभक्ति के कई तरीके होते हैं। कोई शिक्षा देकर तो कोई समाजसेवा के माध्यम से देशभक्ति करता है। लेकिन, शहर के सरबजीत सिंह नारंग का तरीका अलग है। वे नियमित रूप से रक्तदान कर लोगों के जीवन में सहभागी बनते हैं। ४८ वर्षीय नारंग ने विवाह की १६वीं वर्षगांठ पर ८४वीं बार रक्तदान किया। उनकी संस्था में भी कई लोग ऐसे हैं जो नियमित रूप से रक्तदान कर दूसरों का जीवन बचाने में अहम योगदान देते हैं।
नारंग और उनकी पत्नी हर तीन माह में ब्लड बैंक में रक्त जमा करवाते हैं। उनके बडे बेटे ने भी १८ वर्ष पूर्ण होने पर रक्तदान किया। वे अपनी संस्था के माध्यम से थैलेसीमिया से पीडि़त १७० बच्चों को खून उपलब्ध कराते हैं। इन्हें हर १५ दिन में खून की जरूरत होती है। रक्तदान साथ ही वे लोगों को भी जागरूक करते हैं। नारंग के अनुसार १८ से ६५ वर्ष का व्यक्ति हर तीन महीने में रक्तदान कर सकता है।
बच्चों में जगा रहे देशप्रेम का जज्बा...
देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने देश की सेवा से बढ़कर कोई दूसरी सेवा नहीं है। वे बच्चों में देश प्रेम की अलख जगा रहे हैं, उन्हें सेना में नौकरी के लिए तैयार भी करवाते हैं। हम बात कर रहे हैं रिटायर्ड मेजर अशोक यादव की। सिग्नल बटालियन हिसार से सेवानिवृत्ति होने के बाद उन्होंने अपना समय स्कूली बच्चों के लिए समर्पित कर दिया।
शासकीय मॉडल स्कूल में तीन साल से वे बच्चों को सेना में कॅरियर बनाने, एनडीए की तैयारी के टिप्स दे रहे हैं। रोजाना शाम को तीन घंटे की क्लास मेजर की बच्चों के नाम होती है। इसके अलावा देश की सुरक्षा, डिजास्टर मैनेजमेंट, डिफेंस, आर्मी ट्रेनिंग की तैयारी करवाते हैं। यादव बताते हैं कि अब तक करीब ३०० बच्चों को वह प्रशिक्षित कर चुके हैं। मॉडल स्कूल प्राचार्य वीणा वाजपेयी कहती हैं कि बच्चों में भी उत्साह बढ़ा है। १५ बच्चों को एनडीए में भी चयन हुआ है जो स्कूल के लिए भी गौरव की बात है।
बूस्टर फेश कटिंग मशीन ६० लाख रुपए में बना दी
एक्सप्लोसिव कटिंग में काम आने वाली करोड़ों रुपए की बूस्टर फेश कटिंग मशीन बनाने वाले ओएफके के कर्मचारी अमित कुमार अग्रवाल को प्रधानमंत्री श्रमवीर पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वर्ष २०१६ के इन पुरस्कारों की घोषणा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को की गई। इसके तहत ६० हजार रुपए नकद व एक सनद दी जाती है। यह पुरस्कार विभागीय उपक्रमों, केन्द्र व राज्य सरकारों के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निजी क्षेत्र की इकाइयों में काम करने वाले श्रमिकों को दिया जाता है। अमित यह पुरुस्कार प्राप्त करने वाले प्रदेश से एकमात्र कर्मचारी हैं। ओएफके मेंटेनेंस सेक्शन में फिटर जनरल अमित कुमार अग्रवाल ने वर्ष २०१५-१६ में स्वदेशी मशीन को तैयार किया था। फैक्ट्री प्रशसन ने विदेश से ७ करोड़ रुपए की लागत से बूस्टर फेश कटिंग मशीन मंगवाया था। एक दुर्घटना में मशीन खराब हो गई। कई महीने तक उत्पादन प्रभावित रहा। तब अमित कुमार ने फैक्ट्री में मौजूद संसाधनों से मशीन बनाई। इसमें करीब ५०-६० लाख रुपए का खर्च आया।
जब इस मशीन से कम शुरू किया गया तो उसकी गुणवत्ता आयातित मशीन से अच्छी थी। वर्तमान में इसी मशीन से कटिंग का काम हो रहा है। बताया गया कि यदि फैक्ट्री प्रशासन विदेश में मशीन मंगवाता तो कम से कम दो साल लगते।
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