जबलपुर की वंशिका राठौर ने आपदा में खोजा अवसर, आज नामी स्कल्पचर आर्टिस्ट में लिया जाता है नाम
बचपन से कला की शौकीन
वंशिका ने बताया कि वह जब स्कूल में पढ़ती थी, तब से उसे पेंटिंग बनाने का शौक रहा है। स्कूल लाइफ में कई बार फस्र्ट प्राइज जीते। 14 साल की उम्र में मेरी पहली पेंटिंग एग्जीबिशन रानी दुर्गावती संग्रहालय में लगाई गई थी। जिसे खूब सराहना मिली। एग्जीबिशन देखने आए साहित्यककार, आर्टिस्ट और नर्मदा चिंतक अमृत लाल बेगड़ ने प्रभावित होकर तुलिका नाम दिया। जिससे मेरा हौंसला और बढ़ गया। मुझे पेंटिंग, स्कल्पचर आर्ट में कॅरियर बनाना था तो मैंने इंदिरा कला संगीत विवि से फाइन आर्ट की पढ़ाई करने लगी हूं। मुझे अब तक प्रदेश स्तरीय सौ से अधिक प्रतियोगिताओं में चित्रकला पर पुरुस्कार मिल चुके हैं। मेरी पेंटिंग व इमेजिनेशन को देखते हुए कई नामी साहित्यकारों की रचनाओं के कवर पेज तैयार करने का मौका भी मिला है।
लॉकडाउन में कचरे कबाड़ से बनाए स्कल्पचर
साल 2020 में लॉकडाउन लगा तो सबकुछ बंद हो गया। कुछ दिनों तक टाइम काटने के बाद घर में एक दिन सफाई के दौरान लोहा, एल्युमीनियम आदि का कबाड़ निकला। तो उस कबाड़ को देखकर एक स्कल्पचर बनाने का विचार किया। वो स्कल्पचर इतना सुंदर बना कि लोग देखते ही तारीफ करने लगे। मेरे पापा एमपीईबी मुख्यालय शक्ति भवन में अधिकारी हैं, उन्होंने ऐसे ही कबाड़ से कुछ नया बनाने के लिए प्रेरित किया। तब मैंने कबाड़ के जुगाड़ से एक बेहद खूबसूरत जिराफ, फ्लेमिंगो, ट्रेन बनाई। जिसे वहां आने वाले अधिकारियों ने खूब पसंद किया। ये सब स्कल्पचर बिजली के बेकार पड़े उपकरणों से बनाए गए थे, जो कबाड़ में रखे हुए थे। इसके बाद नगर निगम ने भंवरताल गार्डन के सौंदर्यीकरण के लिए मुझे चुना, जहां मैंने मोर, पक्षी, कलेक्टर बंगला के लिए दो हिरणों को जोड़ा भी बनाया है। मेरे काम को जबलपुर प्रवास पर आए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी सराहा और हौंसला बढ़ाया है। इसी दौरान नगर निगम द्वारा क्रिएटिव आर्ट करने के लिए मुझे सम्मानित भी किया है।
मिलने लगे बड़े बड़े ऑर्डर
वंशिका बताती हैं कि कुछ ही समय में मेरे बनाए आर्ट कलाप्रेमियों के बीच खासे पसंद किए जाने लगे हैं। जिसके चलते कई बिजनेसमेन अपने फार्म हाउस, ऑफिस में इस तरह के आर्ट वर्क के ऑर्डर देने लगे हैं। इसके अलावा कॉर्पोरेट सेक्टर की कुछ कंपनियों ने भी स्कल्पचर आर्ट बनाने के लिए ऑफर दिए हैं। चूंकि मेरी पढ़ाई जारी है, इसलिए कम काम ही कर पा रही हूं।