नीतियों से बदला नजरिया
एक जमाने में देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक का एक विज्ञापन लोगों को खूब लुभाता था। इसकी लाइन होती थीं ‘जो बचाया, वही कमायाÓ। मतलब साफ था कि कमाना तो ठीक है, बचाना उससे ज्यादा जरूरी है। इससे भी समझ आता है कि बैंक वाले खुद आम लोगों को जमा करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। फिक्स डिपॉजिट करने वालों की संख्या खूब होती थी। उस दौर में इंदिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र जैसी सरकारी योजनाओं के बॉन्ड में लोग पैसे लगाकर अपने को फायदे में मानते थे। बाद में नीतियों में बदलाव आया। ब्याज दरें इतनी कम हो गई हैं कि लोग फिक्स डिपॉजिट जैसी जमा योजनाओं को कम वरीयता दे रहे हैं। शहर में तीन-चार प्रतिशत लोग ही इसे सही मानते हैं।
रिस्क और प्रॉफिट का कॉकटेल
बैंकों में ब्याज दरें कम होने से ‘बाजार-निवेश-फायदा-नुकसानÓ की तस्वीर बदल गई है। जबलपुर शहर में कुछ साल पहले तक शेयर मार्केट के प्रति रुझान पांच से 10 प्रतिशत लोगों तक सीमित था। यहां सरकारी नौकरियों वाले लोग पारम्परिक अंदाज में बीमा पॉलिसी लेते थे। सरकारी बैकों में फिक्स डिपॉजिट कर देते थे। जमीन या जेवर में भी पैसा लगाना सुरक्षित मानते थे। लेकिन, अब खासकर युवा पीढ़ी को शेयर मार्केट ने प्रभावित किया है। डिजिटली खरीदी-बिक्री के लिए निजी कंपनियों ने तमाम ऐप बाजार में उतार दिए हैं। इनकी तगड़ी ब्रॉन्डिंग की है। लुभावने विज्ञापनों से डिजिटल दुनिया को रंग दिया है। इसके चलते युवाओं ने इसे हाथों हाथ लिया है। वे शेयर मार्केट में पैसा लगाना गलत नहीं मानते।
जोश में होश न खोएं
बाजार में निवेश और बैंकिंग से जुड़े जानकारों का कहना है कि शहर के लोग शेयर मार्केट में निवेश कर रहे हैं, यह अच्छी बात है। लेकिन, खासकर युवाओं को जोश में होश खोने से बचना चाहिए। निवेश सेक्टर में लम्बे समय से काम करने वाले विशेषज्ञ धुर्वेश राजपूत का कहना है कि शेयर मार्केट में फायदा तभी है, जब पूरी रिसर्च के साथ निवेश करें। मार्केट की समझ एक दिन में नहीं आती। इसके लिए लोगों को विशेषज्ञों से चर्चा करनी चाहिए। मार्केट की नब्ज पकडऩे के बाद ही पैसा लगाएं। सेंसेक्स की ऊपर जाती चाल से कोई भी आकर्षित हो सकता है। लेकिन, यह भी समझना जरूरी है कि सभी शेयर हमेशा मुनाफा नहीं देते। बिना समझे-बूझे पैसा लगाने से पैसे डूबने के खतरे रहते हैं।