इनमें नई योजनाओं से लेकर समस्या व भ्रष्टाचर से लेकर भाई- भतीजावाद पर आम जन ने जमकर चर्चा की। शहरी इलाके में पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार का बोलबाला रहा वहीं ग्रामीण इलाके में सड़क, बिजली, आंगनबाड़ी व रसोइया की स्थिति को लेकर लोगों ने पूर्ववर्ती सरकार को आड़े हाथों लिया। पूर्व भाजपा सरकार ने सत्ता पर काबिज होते ही आउट सोर्सिंग का सहारा लिया।
इसने स्थानीय बेरोजगारों को नाराज कर दिया। इसके बाद इस मसले को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया पर वे भी इसे कुछ दिनों बाद इसे भूल गए। इसके चलते जिले के स्कू ल, मॉडल स्कूल, मॉडल कालेज या तो शिक्षक विहीन हो गए या फिर वहां बाहरी उम्मीदवारों ने जगह बना ली। खुलासा हुआ कि बड़ेे पैमाने पर एनजीओ से लेनदेन कर यह सौदा सरकार ने किया। इसके बाद नगरनार के निजीकरण और प्रभावितों को रोजगार ने भाजपा को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।
इस मामले को लेकर छोटे बड़े कई आंदोलन हुए। राजनेताओं ने भी आश्वासन की बोछार कर दी। पर उहापोह अब तक कायम है। इससे जुड़े अन्य सहयोगी खूंटपदर गोलीकांड और बस्तर परिवहन संघ को भंग करना ने भाजपा की राह में रोड़ा का काम किया। सत्तारुढ भाजपा को इनकी अनेदखी भारी पड़ी। यह गुस्सा भी कांग्रेस के वोट में तब्दील हो गया। बस्तर में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर मेडिकल कालेज, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के दावे ने इन्हें जुमलेबाज सरकार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। महारानी अस्पताल को लेकर कांग्रेस के आंदोलन ने आम जनों का ध्यान खींचा और कांग्रेस को इसका लाभ भी मिला।
आंगनबाडी सहायिका, रसोइया संघ, रोजगार सहायक, नर्स, शिक्षा प्रेरक, स्वास्थ्य कर्मी के साथ ही अन्य तृतीय व चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों की हड़ताल को सख्ती से कुचलने ने इस वर्ग के साथ ही इनके परिवारजनों को भी भाजपा से दूर ला दिया। इसमें आग में घी का काम पुलिस कर्मियों के परिजनों के हड़ताल ने किया। मामूली सुविधाओं की मांग पर इनमें से कई को निलंबन तक की सजा उठाकर चुकानी पड़ी। वन, वनोपज व वन्यप्राणियों के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारा करना और बस्तर में अवैध वन कटाई को लेकर जनप्रतिनिधियों की खामोशी ने आम जन के साथ ही वनवासियों को नाराज किया। इन सभी के अलावा भ्रष्ट अधिकारी- कर्मचारियों को शह, स्थानांतरण, मनचाही जगह पर पोस्टिंग व उन पर कार्रवाई नहंी करने से भी पब्लिक नाराज हुई।
‘सेटिंग’ और ‘जुगाड़’ शब्द हुआ दर्ज
भाजपा के शासनकाल में ‘सेटिंग’ और ‘जुगाड़’ का सर्वमान्य व व्यापक उपयोग हुआ। भाई भतीजावाद, ठेकेदारी व सप्लाई के काम में इन दोनों शब्दों ने लालफीताशाही को बढ़ावा दिया। इसने बता दिया कि सत्ता में समीकरण बिठाने व साधारण से काम के लिए भी अर्थ का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। भुक्तभोगियों ने बताया कि इन सारे कामों के शार्टकट ने भी लोकप्रिय व प्रमुख प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाने कोई कसर नहीं छोड़ी है।