scriptहिंसा से पलायन के बाद देवता हो गए थे नाराज, अब घर वापसी से पहले ये इस त्यौहार से देवताओं को मनाना जरूरी | After the return of villagers, organizing pen pandum for angry god | Patrika News

हिंसा से पलायन के बाद देवता हो गए थे नाराज, अब घर वापसी से पहले ये इस त्यौहार से देवताओं को मनाना जरूरी

locationजगदलपुरPublished: Jun 07, 2019 12:15:33 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के दौरान हिंसा से परेशान होकर बस्तर से 50 हजार से अधिक आदिवासी परिवार अपनी जमीन छोडक़र पड़ोसी राज्यों में चले गए थे।

jagdalpur

ग्रामीणों की घर वापसी के बाद, नाराज कुल देवता को मनाने किया जा रहा पेन पंडुम का आयोजन, जानिए पंडुम की खासियत

जगदलपुर. छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के दौरान हिंसा से परेशान होकर बस्तर से 50 हजार से अधिक आदिवासी परिवार अपनी जमीन छोडक़र पड़ोसी राज्यों में चले गए थे। आदिवासी परिवारों का मानना है कि अपनी जमीन छोडक़र जाने के बाद उनके कुल देवता नाराज हो गए हैं। 15 साल बाद जब वे वापसी की तैयारी कर रहे हैं, तो पहले उन्हें मनाना पड़ेगा। इसलिए १२ और १३ जून को पेन पंडुम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें विस्थापित हुए आदिवासी अपने कुल देवता की नाराजगी दूर करने उनसे माफी मांगेंगे। यह पेन पंडुम सुकमा के कोंटा इलाके में मनाया जाएगा।


आदिवासी परिवारों की वापसी कि लिए बस्तर में काम कर रहे समाजसेवी व सीजीनेट स्वर के संस्थापक सुभ्रांशु चौधरी का कहना है उनकी वापसी के लिए प्रशासनिक कवायद तो की ही जा रही है, साथ ही परंपरा व संस्कृति के मुताबिक ये परिवार अपने कुल देवताओं की पूजा भी जमीन पर वापसी से पहले करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए 12 और 13 जून को पेन पंडूम यानी की कुल देवी-देवताओं को मनाने के लिए सामूहिक प्रयास किया जाएगा।

भरवाया जा रहा एफआरए फार्म
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा ऐसे परिवारों से वन अधिकार कानून के तहत विस्थापन के लिए सर्वे फार्म भी भराने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके तहत तेलंगाना के कुछ इलाकों में आदिवासी परिवारों ने आवेदन लिए हैं। बताया जा रहा है कि ये परिवार सलवा जुडूम के दौरान छत्तीसगढ़ से तेलंगाना चले गए थे।अब वापसी का मन बना रहे हैं।

हाल ही में बस्तर लौटें हैं २४ परिवार
सुकमा जिले के ही मरईगुड़ा इलाके से १३ साल पहले पलायन कर चुके २४ परिवार के लोग वापस लौटें है। इनकी वापसी में यहां काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुभ्रांशु चौधरी ने अहम भूमिका निभाई थी। अब वे बस्तर से पलायन किए बाकी आदिवासियों की वापसी के लिए लागातर प्रयास कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि वापसी का सिलसिला शुरू हो पाया है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो