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माओवाद को झेल रहे बस्तर में अब पैर पसार रही ये बीमारी, पहचान छिपाते दूसरे राज्य मे कराते है अपना इलाज

locationजगदलपुरPublished: Oct 15, 2019 04:05:42 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

महारानी अस्पताल एआरटी मुकुंद दीवान प्रभारी ने बताया कि, शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी इस बीमारी का सबसे बड़ा शत्रु है।

माओवाद को झेल रहे बस्तर में अब पैर पसार रही ये बीमारी, पहचान छिपाते दूसरे राज्य मे कराते है अपना इलाज

माओवाद को झेल रहे बस्तर में अब पैर पसार रही ये बीमारी, पहचान छिपाते दूसरे राज्य मे कराते है अपना इलाज

जगदलपुर. माओवाद से जूझ रहे बस्तर में एचआईवी तेजी से पांव पसार रहा है। आंकड़ों की माने तो अति पिछड़ा माने जाने वाले इस इलाके में बीते १६ साल में एचआईवी पीडि़तों की संख्या ५ से बढक़र 1021 तक पहुंच चुकी है, जानकारों के अनुसार इनकी तादाद और अधिक है। बात यदि बस्तर संभाग की बात की जाए तो 8 फरवरी 200३ के बाद से इस बीमारी की जांच और पहचान का काम शुरू हुआ था। अब तक यह संख्या 1021 तक पहुंच गई है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि बस्तर के सीधे-साधे लोग परंपरागत रिवाजों को मानते हैं। शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी इस बीमारी का सबसे बड़ा शत्रु है। मरीज की उम्र इलाज के अभाव में केवल 9 से 10 साल ही रह जाती है। एड्स से बचाव और जागरूकता के लिए होने वाले प्रसार-प्रसार पर खर्च के औचित्य पर भी सवाल उठने लगे हैं। इसमें काउंसिलिंग के लिए शामिल वे मरीज भी जिनका उपचार चल रहा है। हैरत की बात यह है कि इनमें पुरूषों व महिलाओं की दर में एक समान इजाफा हो रहा है। इस बीमारी के मरीजों की सूबे में लगातार संख्या बढ़ रही है। हर साल औसतन 90 से 100 एचआईवी पॉजिटिव मिल रहे हैं। जिसे रोक पाना शासन-प्रशासन के समक्ष चिंता का विषय है।

जागरूकता ही बचाव
महारानी अस्पताल एआरटी मुकुंद दीवान प्रभारी ने बताया कि एड्स से बचाव ही उसका उपचार है। इसके लिए समाज में जागरूकता फैलाई जा रही है। एड्स दिवस पर रैली निकालकर, इसका प्रचार-प्रसार किया गया है। असुरक्षित यौन संबंध ही इसका सबसे बड़ा कारण है। शिक्षा, गरीबी व पलायन को रोकने व सामाजिक बंधन से इस पर काबू पाया जा सकता है।

खुलासा होते ही भाग जाते हैं
एआरटी सेंटर में जैसे ही पीडि़त को यह जानकारी होती है कि उसमें एचआईवी के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो अव्वल तो वह वहां से भाग जाता है। फिर पहचान छिपाते हुए दूसरे शहर व राज्यों में अपना उपचार कराता है। इसके अलावा कुछ अवसाद में चले जाते हैं। इलाज से बचते हुए धीरे-धीरे खामोश हो जाते हैं। एआरटी सेंटर सूत्रों ने बताया पहचान छिपाने की वजह से पीडि़त का वास्तविक आंकड़ा बता पाना संभव नहीं।

मजदूरों का अन्यत्र रोजगार के लिए जाना भी बन रहा वजह
काउंसलर्स व एनजीओ की माने तो बस्तर के ग्रामीणों का रोजगार के लिए सीमावर्ती राज्यों में पलायन करते हैं। इनमें अधिकांश एचआईवी के सबसे बड़े वाहक हैं। इनके जरिए असुरक्षित यौनसंपर्क के एचआईवी वायरस एक-दूसरे में फैल रहे हैं। इकसे बाद दो प्रतिशत ब्लड ट्रांसफ्यूजन व गर्भस्थ शिशुओं का इस रोग से पीडि़त होना है।

वर्ष 2003 से अब तक का आंकड़ा
काउंसलिंग पुरूष – 23367
काउंसलिंग महिला – 12528
एचआईवी पॉजिटिव – 1021

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