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नक्सलियों ने की शांति वार्ता की पेशकश, 3 शर्तों को पूरा करने सरकार पर दबाव

locationजगदलपुरPublished: Mar 19, 2021 04:26:20 pm

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CG Desk

– दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी प्रवक्ता ने जारी किया पत्र .

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जगदलपुर . बस्तर में नक्सलियों (Bastar Naxal offer peace talks) ने शांतिवार्ता के लिए पेशकश की है। लंबे समय के बाद शांतिवार्ता के लिए नक्सलियों ने बस्तर में इस आशय के बयान जारी किए हैं। इसके कई मायने तलाशे जा रहे हैं। भाकपा (माओवादी) दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी प्रवक्ता विकल्प ने दो पन्नों का पत्र जारी कर सरकार से यह आग्रह किया है कि बातचीत के लिए सरकार को माहौल बनाने की पहल करनी चाहिए। पत्र में कहा गया है भाकपा के लिए उत्पीडि़त वर्ग का हित सर्वोपरि है। इसके लिए हम हमेशा शांतिवार्ता के लिए तैयार रहते हैं, बशर्ते सबसे पहले अंदरुनी इलाके में तैनात फोर्स की बैरकों में वापसी हो, पार्टी पर लगाए गए प्रतिबंध समाप्त किए जाएं व जेल में बंद नक्सलियों की निशर्त रिहाई हो। नक्सलियों ने तीन शर्तें भी तय कर दी हैं लेकिन इस पत्र को नक्सलियों के सकारात्मक पहल के तौर पर आंका जा रहा है।
सिविल सोसायटी के प्रयासों का भी स्वागत
जारी पत्र में इस प्रक्रिया को लेकर खुलासा करते हुए कहा गया है कि बस्तर में शांतिवार्ता के लिए गठित एक सिविल सोसायटी की गतिविधियां जारी हैं। हम उनका भी स्वागत करते हैं बशर्ते वे इमानदारी से पहल करें। बता दें कि हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं व पत्रकारों के द्वारा पदयात्रा जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी प्रवक्ता ने जारी बयान में कहा है कि हमारी पार्टी सिविल सोसायटी से अपील करती है कि वह शांति स्थापित करने के लिए शांति के नाम पर पदयात्रा जैसे तरीकों को छोड़कर वास्तविक पीडि़तों से मुलाकात कर उनके दुख तकलीफ को समझे।
वर्ग संघर्ष के लिए कारपोरेट सेक्टर जिम्मेदार
प्रवक्ता विकल्प ने केंद्र व राज्य सरकार की कारपोरेट घरानों के प्रति झुकाव को जनविरोधी व देशद्रोही गतिविधियों की श्रेणी का बताया है। बस्तर सहित बिहार- झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना व आंध्रप्रदेश में जारी वर्ग संघर्ष के लिए इसी कारपोरेट सेक्टर को जिम्मेदार ठहराया है। जारी पत्र में 2004 व 2010 में आंध्रप्रदेश मे ंहुए ऐसे ही सिविल सोसायटी के मूवमेंट का उदाहरण भी दिया है। सरकार ने इसके बावजूद दमनकारी प्रक्रिया अपनाई थी। इसलिए वह वार्ता कारगर साबित नहीं हुई है। माओवादियों के इस जारी पत्र को लेकर शासन व प्रशासनिक हलकों में सरगर्मी तेज हो गई है। ज्ञात हो कि यह पेशकश उस दौरान हुई है जब एक दांडी यात्रा के नाम पर एक पदयात्रा निकाली जा चुकी है। अब सरकार के पक्ष के बयान पर सबकी नजर टिकी हुई है।
शांति के लिए नक्सलियों को हथियार छोड़कर बिना शर्त के सामने आना चाहिए। संविधान के दायरे में किसी से भी बातचीत की जा सकती है।
– सुंदरराज पी, आईजी. बस्तर रेंज

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