scriptमिट्टी के दीये लीजिए…क्योंकि आपके चाइनीज सामान लेने की वजह से कुम्हारपारा में अब सिर्फ तीन ही कुम्हार परिवार बचे | Because..only three potterKUMHAR families are left in the KUMHARPARA | Patrika News

मिट्टी के दीये लीजिए…क्योंकि आपके चाइनीज सामान लेने की वजह से कुम्हारपारा में अब सिर्फ तीन ही कुम्हार परिवार बचे

locationजगदलपुरPublished: Oct 23, 2019 12:40:00 pm

Submitted by:

Shaikh Tayyab

– पत्रिका अभियान : इस दीवाली आप मिट्टी के दीये लें और अपनी सेल्फी लेकर हमें भेजें। हम अपने अखबार में इसे जगह देंगे। ताकि यह परम्परा बची रहें। इस काम को छोडऩे वाले वापस लौट सकें। नंबर 8109690057
पढि़ए कुम्हारों का दर्द… और संकल्प लें की इस दीवाली लेंगे मिट्टी के दीये, टूटने की कगार पर चाक और कुम्हार का नाता
 
 

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diya banate hue kumhar

शेख तैय्यब ताहिर/जगदलपुर. कुम्हारपारा का कुम्हारों से नाता लगभग खत्म होने के कगार पर है। इसके पीछे का कारण हमारी अपनी मिट्टी से बने सामानों की जगह चायनीज और प्लास्टिक के समान खरीदना है। आज आलम यह है कि जो इलाका कुम्हारों के नाम पर बसा था वहां आज सिर्फ तीन से चार परिवार ही बचें हैं, जो मिट्टी से दीये व अन्य सामान बनाने का काम कर रहे हैं। कुम्हार कह रहे हैं कि मिट्टी के काम के लिए चाक चलाते-चलाते अरसा निकल गया। लेकिन दिन ब दिन उनकी स्थिति खराब होती जा रही है। दीवाली जैसे त्यौहारों में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले यह कुम्हार और उसका परिवार खुद धीरे-धीरे अंधकार की ओर ही बढ़ रहा है। ऐसे में अब दूसरों के घरों को दियो से रोशन करने की इच्छा उन्हें भी नहीं रही है। उनका कहना है कि लोगों को अब सिर्फ शगुन के पांच दिए चाहिए और उन्हें तैयार करने से ना तो उनका परिवार पड़ रहा है और ना ही खुद के पेट की आग बुझा पा रहे हैं।

मंगलवार को पत्रिका रिपोर्टर कुम्हारपारा इलाके में जाकर देखा कि कुम्हारों की बस्ती माने जाने वाले इलाके कुम्हारपारा में आखिर कुम्हारों की क्या स्थिति है। जाने पर पता चला कि यहां तो लोग अपना पारम्परिक काम को छोडक़र अन्य काम में लग गए हैं। तीन से चार परिवार ही अब यह काम करते हैं। इनमें से यहां अभी भी अपनी परम्परा से जुड़े हुए ओमप्रकाश से पत्रिका ने बात की और जाना क्या है उनका दर्द।

…और टूट गए हैं कुम्हार

कुम्हार आेम प्रकाश का कहना है कि दीपों की जगह बाजार दीपोत्सव पर्व की तरह उमंग से रोशन है। शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और उंची-उंची इमारतों को झालरों ने रोशन कर दिया है। एेसे में दीपों के पर्व पर दीप का निर्माता कुम्हार उदास क्यों न हो। टूटे हुए मनसे चाक चलाए जा रहा है। उनका कहना है कि दीपावली नजदीक आते ही पूरा परिवार दीये बनाने की तैयारी में जुट जाता है लेकिन त्यौहार करीब आने के बाद दीयों की मांग नहीं होने से सभी निराश होकर अंदर से टूटने लगते हैं।

मिट्टी के साथ…. कुम्हार का पसीना और आंसू भी लगा होता है
राकेश ने बताया कि मिट्टी के दीये बनाने में उन्हें और उनके परिवार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। ५ किमी दूर साइकिल में जाकर वे मिट्टी लेकर आते हैं। इसके बाद इसे भीगाने के बाद काफी मसला जाता है। इसके बाद सतह पर आने वाली चिकनी मिट्टी को निकाला जाता है। इसमें रेत की निश्चित मात्रा मिलाने के बाद बर्तन व दीये बनाए जाते हैं। इसके बाद भी उनकी स्थिति लगातार गिर रही है।

आधुनिक हुए, लेकिन नहीं बदली तकदीर

ऐसा नहीं है कि कुम्हारों ने वक्त के साथ कदमताल करने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने भी आधुनिकता का दामन थामा और मोटर से चलने वाले चाक का प्रयोग किया। अब हाथ की डंडी से नहीं मोटर से घूमने लगे हैं चाक। लेकिन फिर भी स्थिति नहीं बदली। इसके पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि प्लास्टिक और विदेशी सामान लोगों की पसंद हो गई है। इसलिए उनकी स्थिति खराब होती जा रही है।

मॉल में चिल्हर पैसे छोडक़र आने वाले दीये के लिए करते हैं मोलभाव
कुम्हारों का कहना है कि वे एक दीये २ रुपए में बेच रहे हैं। ज्यादा लेने पर दाम कम भी कर देते हैं। इसके बाद भी वे कुछ लोग मोलभाव करते हैं। इतनी छोटी सी कमाई में दियों को किसी भी हाल में बेचने के लिए भाव कम करना पड़ता है। वे कहते हैं हम सोचते हैं कि व्यापारियों को ही सीधे दिए बेच दे क्योंकि वे सामान महंगा बेचना और ग्राहकों से मोलभाव करना अच्छा नहीं लगता। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि ये वही लोग हैं, जो यहां मॉल में सामान लेने के बाद बचे चिल्लर पैसों को वहीं छोडक़र आ जाते हैं। वे सडक़ पर सामान बेचते हैं इसलिए उनसे मोलभाव होता है। जबकि बड़े बड़े दुकानों में पैसे ज्यादा देने को वे परम्परा समझते हैं।

आने वाली पीढ़ी इसे सीखने को तैयार नहीं

आेम बताते हैं कि इस काम में कोई बचत नहीं है पूरा परिवार दिन भर इस काम में लगे रहता है। इसके बाद भी इतनी कमाई नहीं है की त्यौहार भी ठीक से मना पाए। बच्चों को काम सीखने के लिए कहता हूं लेकिन कोई भी तैयार नहीं है उन्हें पता है कि इस काम से अपना गुजारा नहीं चलाया जा सकता।
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