आमने-सामने की लड़ाई में नहीं देखी जाती इंसानियत
यमन देवांगन मुठभेड़ में शामिल जवानों की दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। यमन का कहते हैं कि युद्ध व आमने – सामने की लड़ाई में इंसान और इंसानियत नहीं देखी जाती। आगे वाला माओवादी हो, आतंकवादी हो या आम इंसान हो जब हम पर हमला करता है तो हमें आत्मरक्षार्थ गोलियां चलानी पड़ती है। यह युद्ध की नीति है। लेकिन इस युद्ध में दुश्मन मारा जाता है तो उसके शव उसका सम्मान करना भी हमारा कर्तव्य है।ढाई घंटे तक चले मुठभेड़ में 10 नक्सली मारे गए…
ट्रेनिंग करते नक्सली चिल्ला रहे थे। उन्हें यह बात समझ आ गई और वे उस ओर आगे बढ़े। वे इतने करीब पहुंच गए थे कि कैंप में गुरिल्ला वॉर प्रशिक्षण की ट्रेनिंग करते नक्सलियों को साफ देख रहे थे। लेकिन इसी दौरान नक्सलियों के संतरी ने उन्हें देख लिया और आईईडी ब्लास्ट कर दिया। इसके बाद करीब ढाई घंटे तक चले मुठभेड़ में उनकी दोनों टुकडिय़ों ने मिलकर दस नक्सलियों को ढेर कर दिया।
नक्सलियों का शव ससम्मान बीजापुर लाया गया..
लड़ाई यहां खत्म हो चुकी थी, लेकिन अब सबसे बड़ी लड़ाई थी मारे गए मारे नक्सलियों का शव ससम्मान बीजापुर पहुंचाने की। उन्होंने सभी दस माओवादियों के शव को कंधे पर लादा और उफनती नदी में उतर गए। खतरे पर बहाद्दूरी जीत हुई और देखते ही देखते जवान शवों को लेकर नदी पार कर गए। इस तरह वे करीब 16 किमी शवों को कांधे पर लेकर चले। इसके बाद वाहन में उन्हें डालकर भैरमगढ़ तक लाया गया।