दंतेश्वरी मंदिर को सिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, लिहाजा साल भर यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। इसके बावजूद पुरातत्व विभाग ने छत को उधेड़ने से पहले बारिश से सुरक्षित रखने के लिए कैप कवर या शीट डालने जैसा कोई इंतजाम नहीं किया। जिसके चलते यह नौबत आई है। हालांकि, टेंपल कमेटी ने अपने स्तर पर तिरपाल लाकर ऊपर और निचले हिस्से में लगाकर बारिश का पानी टपकने की समस्या से आंशिक राहत दिलाई है।
उधेड़ी गई परत के स्थान पर लाइम स्टोन यानि चूना, बेल की गोंद, चिमनी भट्टी की ईंटों के टुकड़े और अन्य चीजों से ढलाई की जानी है। ये सारी चीजें मध्यप्रदेश व यूपी से मंगवा ली गई हैं। पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर होने की वजह से इसकी मरम्मत व ढलाई भी उसी पुरातन तकनीक से करने की योजना विभाग ने बनाई है।
इससे मंदिर के भीतर दर्शनार्थियों व पुजारियों को बारिश के पानी से भीगना पड़ रहा है। केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने जून महीने से यह काम शुरू किया था। काम शुरू करने से पहले केंद्रीय पुरातत्व विभाग आर्कियों लॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अफसरों ने तत्कालीन एसडीएम को आश्वस्त किया था कि मानसून आगमन से पहले मरम्मत का काम पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन जून माह पूरा बीतने व जुलाई महीने का एक पखवाड़ा पूरा होने के बावजूद छत की मरम्मत का काम पूरा नहीं किया जा सका। उल्टे यहां काम कर रहे विभागीय प्रशिक्षित कारीगर व तकनीशियन त्यौहार मनाने के नाम पर एक साथ अपने राज्य यूपी लौट गए। उनकी वापसी पर ही अब आगे का काम शुरू हो सकेगा।