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जगदलपुर

बटन मशरूम खाने से होता है शुगर- बीपी कंट्रोल, जानें क्या है इसमें खास

* 16 डिग्री तापमान के बंद कमरे में तैयार की जा रही यह फसल(Button Mushroom)
* गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय में नया प्रयोग, किसानों की आमदनी बढ़ाने में हो सकेगा कारगर

जगदलपुरMay 25, 2019 / 09:56 pm

Deepak Sahu

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बटन मशरूम खाने से होता है शुगर- बीपी कंट्रोल, जानें क्या है इसमें खास

जगदलपुर. गुण्डाधुर कृषि महाविद्यालय में वातानुकुलित कमरे के भीतर 16 डिग्री तापमान में बटन मशरूम(Button Mushroom) की फसल तैयार की जा रही है। यह उपज कंट्रोल कंडीशन में ही ली जा सकती है। इसके लिए 10 बाई 12 के कमरे में एक डेढ़ टन का एसी लगाया गया है। इस प्रयोग की शुरुआत दो साल पहले कृषि महाविद्यालय के छात्रों ने वैज्ञानिकों के साथ मिलकर की थी। यह प्रयोग अब सफल हो चुका है।
बस्तर(Bastar) में फिलहाल गुण्डाधुर कृषि महाविद्यालय(Agricultural college) में ही बटन मशरूम (Button Mushroom) के उत्पादन पर काम चल रहा है। कॉलेज के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक आरएस नेताम ने बताया कि बटन मशरूम की आयशर मशरूम से ज्यादा डिमांड में है। इसमें औषधीय गुण भी ज्यादा हैं। यह प्रोटीन और फाइबर से भरपूर है। वसा इस वैराइटी में कम होता है। इस वजह से यह शुगर और बीपी के मरीजों के लिए फायदेमंद है।

लागत 20 और मुनाफा 30 हजार का
बटन मशरूम में पहली बार 10 बाई 12 के कमरे में एसी और रेत की व्यवस्था करनी होती है। इस पर 60 हजार रुपए खर्च होते हैं। इसके बाद प्रत्येक दो महीने के लिए 20 हजार रुपए खर्च कर फसल ली जा सकती है। इससे 30 हजार रुपए तक का मुनाफा होता है। दो महीने में एक से डेढ़ क्विंटल तक की फसल मिल जाती है। महंगे रेस्टोरेंट में इस बटन मशरूम(Button Mushroom) के सूप व लजीज सब्जी व व्यंजन के शौकीन मुंह मांगे दाम दे रहे हैं।


ऐसे तैयार होती है बटन मशरूम
अगर आप वातानुकुलित कमरे में मशरूम(Button Mushroom) की फसल लेते हैं तो थोड़ी सी निगरानी से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। इसके लिए कमरे में हाई पावर एसी लगाएं। तापमान 16 से 17 डिग्री के बीच रखें। जिस कमरे में मशरूम लगाई जाए वहां जमीन की ठंडक बनाए रखने के लिए नीचे रेत बिछा दें। बटन मशरूम का उत्पादन सतत निगरानी की मांग करता है। इसलिए दिन में कम से कम चार बार इसका जायजा लेना जरूरी है।

बस्तर के किसानों तक पहुंचाने का टारगेट
कृषि महाविद्यालय में बटन मशरूम(Button Mushroom) के उत्पादन का प्रयोग सफल होने के बाद अब कृषि विज्ञान केंद्र ने भी इसके उत्पादन पर अपने स्तर पर प्रयोग शुरू कर दिया है। केवीके के वैज्ञानिक धर्मपाल केरकेट्टा ने बताया कि हम चाहते हैं कि कम से कम लागत में बस्तर(Bastar) के किसान(Farmer) इसकी फसल ले सकें। 12 महीने फसल लेने के लिए एसी की जरूरत पड़ती है। गांवों में यह संभव नहीं है। ऐसे में इसका विकल्प ढूंढकर इसे किसानों(Farmer) तक पहुंचाने का टारगेट बनाया जा रहा है।

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