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बस्तर

अजीबो-गरीब शादी ! पूरे शहर में हो रही है चर्चा, वर-वधू ने समाज को दी अच्छी सीख

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6 years ago
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वर-वधू ने इस पेड़ को साक्षी मानकर लिए फेरे, एक-दूसरे के चेहरे पर लगाए मृदा लेप, देखें तस्वीर
पेड़ों पर धागा बांधकर वर-वधू ने लिया आशीर्वाद, कहा - परिवार की तरह वनों की भी करेंगे रक्षा

अजय श्रीवास्तव / जगदलपुर . शहर से 40 किमी से अधिक दूरी पर बस्तर ब्लाक के ग्राम भोंड में बीते दिनों हुई एक शादी ने पर्यावरण बचाने के लिए ऐसा अनूठा उदाहरण बनाया, जिसकी चर्चा इलाके में जोर- शोर से हो रही है। भोंड के पिडसीगुड़ा पारा निवासी भादू व गुड्डी ने आदिवासी विवाह परंपरा के साथ नया प्रयोग कर आधुनिक समाज को भी सीख दी है।

मिट्टी का लेप कर बताया महत्व
बीते 10 मई को हुई इस शादी में हरिद्रालेपन की परंपरा निभाने के लिए हल्दी के अलावा खेत की मिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया। वर- वधू व उनके परिजन ने परस्पर चेहरे पर मिट्टी का लेप लगाया। चर्चा में इन्होंने बताया कि खेत की मिट्टी से ही वे पले-बढ़े हैं। ऐसे में इस रस्म में मिट्टी को हल्दी के बराबर महत्व देने का हमने फैसला लिया था। भादू ने कहा कि मिट्टी से लगाव ही एक किसान के जीवन का ध्येय होता है।

यह है कोठार देव
भोंड के पिडसीगुड़ापारा के नजदीक करीब 50 फीट ऊंची एक टेकरी है। इसमें लगे पेड़- पौधों को बचाने के लिए तीन साल पहले ग्रामीणों ने देव- कोठार (देवताओं का निवास) का नाम दिया। इसके बाद से विविध अवसरों पर ग्रामीण यहां जुटकर अपने सामाजिक- धार्मिक आयोजन करते हैं। देव- कोठार समिति के संयोजक सुभाष श्रीवास्तव, लखन साहू, ईश्वर कश्यप, अनंतराम पटेल ने बताया कि बिना सरकारी प्रयास के इस देव- कोठार को संरक्षित किया जा रहा है। इस पहाड़ी में मिश्रित प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। पर्यावरण दिवस, रक्षाबंधन आदि पर्वों में इन वृक्ष देवताओं का आशीर्वाद लेना परंपरा बन गई है।

फेरे लेने को इसलिए चुना सेमल का पेड़
मंडप मेंं विवाह की रस्म को निभाने के बाद वर-वधू व बाराती दो किमी दूर देव- कोठार गए। वहां एक सेमल के पेड़ को भी साक्षी मानकर नवदम्पती ने आजीवन साथ रहने की कसमें खाई। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल का पेड़ पक्षियों के घोसला बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसलिए दंपती ने घरौंदा बनाने के लिए इस पेड़ को चुना। इतने में ही बाराती संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने एक- एक कर वहां लगे कई प्रजातियों के पेड़ व पौधों को धागा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प दोहराया। इनकी देखा-देखी गांव के अन्य युवाओं ने भी अपने विवाह में एेसा ही करने का संकल्प दोहराया।

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वर-वधू ने इस पेड़ को साक्षी मानकर लिए फेरे, एक-दूसरे के चेहरे पर लगाए मृदा लेप, देखें तस्वीर
पेड़ों पर धागा बांधकर वर-वधू ने लिया आशीर्वाद, कहा - परिवार की तरह वनों की भी करेंगे रक्षा

अजय श्रीवास्तव / जगदलपुर . शहर से 40 किमी से अधिक दूरी पर बस्तर ब्लाक के ग्राम भोंड में बीते दिनों हुई एक शादी ने पर्यावरण बचाने के लिए ऐसा अनूठा उदाहरण बनाया, जिसकी चर्चा इलाके में जोर- शोर से हो रही है। भोंड के पिडसीगुड़ा पारा निवासी भादू व गुड्डी ने आदिवासी विवाह परंपरा के साथ नया प्रयोग कर आधुनिक समाज को भी सीख दी है।

मिट्टी का लेप कर बताया महत्व
बीते 10 मई को हुई इस शादी में हरिद्रालेपन की परंपरा निभाने के लिए हल्दी के अलावा खेत की मिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया। वर- वधू व उनके परिजन ने परस्पर चेहरे पर मिट्टी का लेप लगाया। चर्चा में इन्होंने बताया कि खेत की मिट्टी से ही वे पले-बढ़े हैं। ऐसे में इस रस्म में मिट्टी को हल्दी के बराबर महत्व देने का हमने फैसला लिया था। भादू ने कहा कि मिट्टी से लगाव ही एक किसान के जीवन का ध्येय होता है।

यह है कोठार देव
भोंड के पिडसीगुड़ापारा के नजदीक करीब 50 फीट ऊंची एक टेकरी है। इसमें लगे पेड़- पौधों को बचाने के लिए तीन साल पहले ग्रामीणों ने देव- कोठार (देवताओं का निवास) का नाम दिया। इसके बाद से विविध अवसरों पर ग्रामीण यहां जुटकर अपने सामाजिक- धार्मिक आयोजन करते हैं। देव- कोठार समिति के संयोजक सुभाष श्रीवास्तव, लखन साहू, ईश्वर कश्यप, अनंतराम पटेल ने बताया कि बिना सरकारी प्रयास के इस देव- कोठार को संरक्षित किया जा रहा है। इस पहाड़ी में मिश्रित प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। पर्यावरण दिवस, रक्षाबंधन आदि पर्वों में इन वृक्ष देवताओं का आशीर्वाद लेना परंपरा बन गई है।

फेरे लेने को इसलिए चुना सेमल का पेड़
मंडप मेंं विवाह की रस्म को निभाने के बाद वर-वधू व बाराती दो किमी दूर देव- कोठार गए। वहां एक सेमल के पेड़ को भी साक्षी मानकर नवदम्पती ने आजीवन साथ रहने की कसमें खाई। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल का पेड़ पक्षियों के घोसला बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसलिए दंपती ने घरौंदा बनाने के लिए इस पेड़ को चुना। इतने में ही बाराती संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने एक- एक कर वहां लगे कई प्रजातियों के पेड़ व पौधों को धागा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प दोहराया। इनकी देखा-देखी गांव के अन्य युवाओं ने भी अपने विवाह में एेसा ही करने का संकल्प दोहराया।

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वर-वधू ने इस पेड़ को साक्षी मानकर लिए फेरे, एक-दूसरे के चेहरे पर लगाए मृदा लेप, देखें तस्वीर
पेड़ों पर धागा बांधकर वर-वधू ने लिया आशीर्वाद, कहा - परिवार की तरह वनों की भी करेंगे रक्षा

अजय श्रीवास्तव / जगदलपुर . शहर से 40 किमी से अधिक दूरी पर बस्तर ब्लाक के ग्राम भोंड में बीते दिनों हुई एक शादी ने पर्यावरण बचाने के लिए ऐसा अनूठा उदाहरण बनाया, जिसकी चर्चा इलाके में जोर- शोर से हो रही है। भोंड के पिडसीगुड़ा पारा निवासी भादू व गुड्डी ने आदिवासी विवाह परंपरा के साथ नया प्रयोग कर आधुनिक समाज को भी सीख दी है।

मिट्टी का लेप कर बताया महत्व
बीते 10 मई को हुई इस शादी में हरिद्रालेपन की परंपरा निभाने के लिए हल्दी के अलावा खेत की मिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया। वर- वधू व उनके परिजन ने परस्पर चेहरे पर मिट्टी का लेप लगाया। चर्चा में इन्होंने बताया कि खेत की मिट्टी से ही वे पले-बढ़े हैं। ऐसे में इस रस्म में मिट्टी को हल्दी के बराबर महत्व देने का हमने फैसला लिया था। भादू ने कहा कि मिट्टी से लगाव ही एक किसान के जीवन का ध्येय होता है।

यह है कोठार देव
भोंड के पिडसीगुड़ापारा के नजदीक करीब 50 फीट ऊंची एक टेकरी है। इसमें लगे पेड़- पौधों को बचाने के लिए तीन साल पहले ग्रामीणों ने देव- कोठार (देवताओं का निवास) का नाम दिया। इसके बाद से विविध अवसरों पर ग्रामीण यहां जुटकर अपने सामाजिक- धार्मिक आयोजन करते हैं। देव- कोठार समिति के संयोजक सुभाष श्रीवास्तव, लखन साहू, ईश्वर कश्यप, अनंतराम पटेल ने बताया कि बिना सरकारी प्रयास के इस देव- कोठार को संरक्षित किया जा रहा है। इस पहाड़ी में मिश्रित प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। पर्यावरण दिवस, रक्षाबंधन आदि पर्वों में इन वृक्ष देवताओं का आशीर्वाद लेना परंपरा बन गई है।

फेरे लेने को इसलिए चुना सेमल का पेड़
मंडप मेंं विवाह की रस्म को निभाने के बाद वर-वधू व बाराती दो किमी दूर देव- कोठार गए। वहां एक सेमल के पेड़ को भी साक्षी मानकर नवदम्पती ने आजीवन साथ रहने की कसमें खाई। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल का पेड़ पक्षियों के घोसला बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसलिए दंपती ने घरौंदा बनाने के लिए इस पेड़ को चुना। इतने में ही बाराती संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने एक- एक कर वहां लगे कई प्रजातियों के पेड़ व पौधों को धागा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प दोहराया। इनकी देखा-देखी गांव के अन्य युवाओं ने भी अपने विवाह में एेसा ही करने का संकल्प दोहराया।

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वर-वधू ने इस पेड़ को साक्षी मानकर लिए फेरे, एक-दूसरे के चेहरे पर लगाए मृदा लेप, देखें तस्वीर
पेड़ों पर धागा बांधकर वर-वधू ने लिया आशीर्वाद, कहा - परिवार की तरह वनों की भी करेंगे रक्षा

अजय श्रीवास्तव / जगदलपुर . शहर से 40 किमी से अधिक दूरी पर बस्तर ब्लाक के ग्राम भोंड में बीते दिनों हुई एक शादी ने पर्यावरण बचाने के लिए ऐसा अनूठा उदाहरण बनाया, जिसकी चर्चा इलाके में जोर- शोर से हो रही है। भोंड के पिडसीगुड़ा पारा निवासी भादू व गुड्डी ने आदिवासी विवाह परंपरा के साथ नया प्रयोग कर आधुनिक समाज को भी सीख दी है।

मिट्टी का लेप कर बताया महत्व
बीते 10 मई को हुई इस शादी में हरिद्रालेपन की परंपरा निभाने के लिए हल्दी के अलावा खेत की मिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया। वर- वधू व उनके परिजन ने परस्पर चेहरे पर मिट्टी का लेप लगाया। चर्चा में इन्होंने बताया कि खेत की मिट्टी से ही वे पले-बढ़े हैं। ऐसे में इस रस्म में मिट्टी को हल्दी के बराबर महत्व देने का हमने फैसला लिया था। भादू ने कहा कि मिट्टी से लगाव ही एक किसान के जीवन का ध्येय होता है।

यह है कोठार देव
भोंड के पिडसीगुड़ापारा के नजदीक करीब 50 फीट ऊंची एक टेकरी है। इसमें लगे पेड़- पौधों को बचाने के लिए तीन साल पहले ग्रामीणों ने देव- कोठार (देवताओं का निवास) का नाम दिया। इसके बाद से विविध अवसरों पर ग्रामीण यहां जुटकर अपने सामाजिक- धार्मिक आयोजन करते हैं। देव- कोठार समिति के संयोजक सुभाष श्रीवास्तव, लखन साहू, ईश्वर कश्यप, अनंतराम पटेल ने बताया कि बिना सरकारी प्रयास के इस देव- कोठार को संरक्षित किया जा रहा है। इस पहाड़ी में मिश्रित प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। पर्यावरण दिवस, रक्षाबंधन आदि पर्वों में इन वृक्ष देवताओं का आशीर्वाद लेना परंपरा बन गई है।

फेरे लेने को इसलिए चुना सेमल का पेड़
मंडप मेंं विवाह की रस्म को निभाने के बाद वर-वधू व बाराती दो किमी दूर देव- कोठार गए। वहां एक सेमल के पेड़ को भी साक्षी मानकर नवदम्पती ने आजीवन साथ रहने की कसमें खाई। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल का पेड़ पक्षियों के घोसला बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसलिए दंपती ने घरौंदा बनाने के लिए इस पेड़ को चुना। इतने में ही बाराती संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने एक- एक कर वहां लगे कई प्रजातियों के पेड़ व पौधों को धागा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प दोहराया। इनकी देखा-देखी गांव के अन्य युवाओं ने भी अपने विवाह में एेसा ही करने का संकल्प दोहराया।

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वर-वधू ने इस पेड़ को साक्षी मानकर लिए फेरे, एक-दूसरे के चेहरे पर लगाए मृदा लेप, देखें तस्वीर
पेड़ों पर धागा बांधकर वर-वधू ने लिया आशीर्वाद, कहा - परिवार की तरह वनों की भी करेंगे रक्षा

अजय श्रीवास्तव / जगदलपुर . शहर से 40 किमी से अधिक दूरी पर बस्तर ब्लाक के ग्राम भोंड में बीते दिनों हुई एक शादी ने पर्यावरण बचाने के लिए ऐसा अनूठा उदाहरण बनाया, जिसकी चर्चा इलाके में जोर- शोर से हो रही है। भोंड के पिडसीगुड़ा पारा निवासी भादू व गुड्डी ने आदिवासी विवाह परंपरा के साथ नया प्रयोग कर आधुनिक समाज को भी सीख दी है।

मिट्टी का लेप कर बताया महत्व
बीते 10 मई को हुई इस शादी में हरिद्रालेपन की परंपरा निभाने के लिए हल्दी के अलावा खेत की मिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया। वर- वधू व उनके परिजन ने परस्पर चेहरे पर मिट्टी का लेप लगाया। चर्चा में इन्होंने बताया कि खेत की मिट्टी से ही वे पले-बढ़े हैं। ऐसे में इस रस्म में मिट्टी को हल्दी के बराबर महत्व देने का हमने फैसला लिया था। भादू ने कहा कि मिट्टी से लगाव ही एक किसान के जीवन का ध्येय होता है।

यह है कोठार देव
भोंड के पिडसीगुड़ापारा के नजदीक करीब 50 फीट ऊंची एक टेकरी है। इसमें लगे पेड़- पौधों को बचाने के लिए तीन साल पहले ग्रामीणों ने देव- कोठार (देवताओं का निवास) का नाम दिया। इसके बाद से विविध अवसरों पर ग्रामीण यहां जुटकर अपने सामाजिक- धार्मिक आयोजन करते हैं। देव- कोठार समिति के संयोजक सुभाष श्रीवास्तव, लखन साहू, ईश्वर कश्यप, अनंतराम पटेल ने बताया कि बिना सरकारी प्रयास के इस देव- कोठार को संरक्षित किया जा रहा है। इस पहाड़ी में मिश्रित प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। पर्यावरण दिवस, रक्षाबंधन आदि पर्वों में इन वृक्ष देवताओं का आशीर्वाद लेना परंपरा बन गई है।

फेरे लेने को इसलिए चुना सेमल का पेड़
मंडप मेंं विवाह की रस्म को निभाने के बाद वर-वधू व बाराती दो किमी दूर देव- कोठार गए। वहां एक सेमल के पेड़ को भी साक्षी मानकर नवदम्पती ने आजीवन साथ रहने की कसमें खाई। ग्रामीणों का कहना है कि सेमल का पेड़ पक्षियों के घोसला बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसलिए दंपती ने घरौंदा बनाने के लिए इस पेड़ को चुना। इतने में ही बाराती संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने एक- एक कर वहां लगे कई प्रजातियों के पेड़ व पौधों को धागा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प दोहराया। इनकी देखा-देखी गांव के अन्य युवाओं ने भी अपने विवाह में एेसा ही करने का संकल्प दोहराया।

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