पिछले साल उच्च अधिकारी निरीक्षण कर दिखा चुके है हरी झंडी पिछले साल जून माह में कमिश्नर आफ रेलवे सेफ्टी (सीआरएस) साउथ इस्टर्न जोन कोलकाता एस मित्रा के नेतृत्व में प्रबंधक वाल्टेयर रेलमंडल (डीआरएम) चेतन कुमार श्रीवास्तव और इस्ट कोस्ट रेल जोन भुवनेश्वर और वाल्टेयर से पहुंचे 50 से अधिक उच्चाधिकारियों की टीम ने नई लाइन का सघन निरीक्षण किया था। 7 घंटे तक चली इस जांच में सबसे पहले अधिकारियों ने पैदल और फिर ट्राली में बैठकर निरीक्षण किया और इसके बाद अंतिम चरण में स्पेशल ट्रेन दौड़ाई गई थी। निरीक्षण में सब कुछ सही पाया गया था। अब इस लाइन पर सिफ ट्रेन दौड़ानी बाकी है।
दोहरीकरण से बस्तर और रेलवे दोनों को होंगे फायदे रेलवे दोहरीकरण का काम पूरा होने से न केवल बस्तरवासियों को फायदा मिलेगा बल्कि रेलवे को भी इसका बड़ा फायदा होगा। बस्तरवासियों के नजरिए से देंखे तो अधिक ट्रेनों का संचलान आसान होगा। सभी यात्री ट्रेने किरंदूल तक चल सकेंगी, जो अब तक जगदलपुर में आकर रूक जाती हैं। इतना ही नहीं भविष्य में बस्तर में ट्रेनों की सुविधा मिलने की भी संभावना बढ़ जाएगी। वहीं रेलवे के नजरिए से यहां से लौह इस्पात का परिवहन बढ़ जाएगा। जिससे रेलवे को बड़ा फायदा हो सकता है। यही वजह है कि रेलवे भी तेजी से काम करने की कोशिश करते हुए 2023 में इसे पूरा कर लेने यानी पहले चरण को पूरा कर लेने का दावा कर रहा है।
दरअसल किरंदुल-कोत्तावालसा रेललाइन दोहरीकरण परियोजना पर काम चल रहा है। इसके अंतर्गत अब तक ओडिशा के जैपुर से दंतेवाड़ा के किरंदुल तक 220 किलोमीटर के हिस्से में से करीब 190 किलोमीटर लाइन का दोहरीकरण कार्य पूरा हो चुका है। जिसमें जयपुर से जगदलपुर 70 किमी तक का कार्य पूरा हो चुका है। वहीं दूसरे उपचरण का काम जगदलपुर से सिलकजोड़ी और वहां तक 45 किमी की रेल लाइन भी बिछ चुुकी है। इसी तरह जैपुर से कोरापुट और गीदम से टाकपाल तक की 11 किमी की रेल लाइन बिछ चुकी है।
70 किमी की स्पीड का ट्रायल भी पूरा गौरतलब है कि इन पूरी लाइन में जितनी भी जगह का काम पूरा हो चुका है। खासकर जगदलपुर से जैपुर तक तैयार दोहरीकरण की लाइन में ट्रेनों की आवाजाही जारी है। दोहरीकरण में बिछाई गई पटरियों का उपयोग ट्रेने करीब ढाई साल से कर रही है। वहीं पिछले साल जून माह में निरीक्षण के अंतिम चरण में गीदम-डाकपाल के बीच कमिश्नर आफ रेलवे सेफ्टी की स्पेशल ट्रेन ने दो से तीन फेरे लगाए। शुरूआत में ट्रेन ने गीदम से डाकपाल के बीच धीमी गति से दूरी तय की। इसके बाद अगले फेरे में गति बढाते हुए 60 से 70 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से ट्रेन दौड़ाई जा चुकी है।