जज्बातों को ठीक करने वाला डाक्टर कहते हैं
उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि ऐसे लोगों को दयनीय स्थिति से उबारने काम करना होगा। इसके बाद वे उस महिला को लेकर घर पहुंचे और एक नई शुरुआत की। बिना कि सी शासकीय सहायता के यह संस्था लगातार १७ साल से काम कर रही है, शुरु में इक्का दुक्का बुजुर्ग थे। उन्हें सिर्फ नाश्ता कराया जाता था। धीरे-धीरे अब यहंा इनकी संख्या बढ़ गई है। उनके इस काम में अब कई दानदाता जुड़ गए हैं इसलिए अब खाना खिलाने व रहने को लेकर सहायता मिल जा रही है। आदिवासी इलाके में यह सेवा करने के कारण अब जानकार उन्हें जज्बातों को ठीक करने वाला डाक्टर कहते हैं। चर्चा में डा. राजेश ने बताया कि फाउंडेशन के साथ ही अपने काम का विस्तार करते हुए रक्तदान जीवन दान की प्रेरणा को अपनाते हुए दो सौ स्वयं सेवियों की टीम बनाई है जो आपातस्थिति में किसी भी तरह से मैसेज मिलने पर रक्तदान करते हैं।
17 साल से जारी है काम, मदर टेरेसा से ली पे्ररणा
अब यह कार्य करते उन्हें १७ साल गुजर गए हैं। मदर टेरेसा के काम से प्रेरित होकर डा. राजेश ने अपने सात सहयोगियों के साथ मां फाउंडेशन की शुरुआत की। यह आज बुजुर्गों को सहारा देने वाला इस इलाके का एक जाना माना संस्थान बन गया है। यहां रह रही ७४ वर्षीय बुजुर्ग महिला बिच्चम ने बताया कि वह यहां १३ साल से रह रही हें। उनकी दो बेटियां थीं, दोनों की शादी हो गई है, एक की असमय मौत हो गई व दूसरी शादी के बाद से उनसे दूर है। बेसहारा सा जीवन बिता रही थी, अब यह फाउंडेशन ही उनका घर है।