scriptआदिवासियों के साथ छलावा साबित होता मनरेगा | MNREGA proved to be a hoax with the tribals | Patrika News

आदिवासियों के साथ छलावा साबित होता मनरेगा

locationजगदलपुरPublished: Feb 18, 2023 12:53:17 am

Submitted by:

Rajeev Vishwakarma

मजबूरी में फिर दक्षिण भारत की ओर निकले आदिवासी, आनलाईन पेपेंट से मजदूरों का मोह भंग, पलायन करने को मजबूर

पेट के लिए...यहां से बड़ी संख्या में रोज ग्रामीण तेलंगाना की तरफ रोजी-रोटी के लिए पलायन करते दिख रहे हैं।

पेट के लिए…यहां से बड़ी संख्या में रोज ग्रामीण तेलंगाना की तरफ रोजी-रोटी के लिए पलायन करते दिख रहे हैं।

कोंटा . इन दिनों क्षेत्र में धान की कटाई के बाद लगातार सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा तीनों जिलों से प्रतिदिन हजारों की संख्या में तेलंगाना व आंध्र की ओर मजदूरों का पलायन का दौर लगातार जारी है। कोंटा छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर होने के कारण प्रति दिन हजारों की संख्या में मजदूरों को तेलंगाना व आंध्र की ओर पलायन करते देखा जा रहा हैं। परंतु मजदूरों के इस पलायन को रोकने में शासन प्रशासन विफल होता नजर आ रहा है। केंद्र शासन की महत्पूर्ण योजना लोगों को 100 दिन की मजदूरी देने का दावा भी विफल होता नजर आ रहा है। इसका महत्वपूर्ण कारण महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीणों को मजदूरी करने के बावजूद कई महीने तक अपना मेहनताना नहीं मिल पाता है। जिससे ग्रामीण पलायन के लिए मजबूर होते हैं।
पलायन के बाद मजदूरों के साथ होता है शोषण व धोखा – इधर ग्रामीण मनरेगा का समय पर भुगतान नहीं होने पर अपने पेट की भूख मिटाने के लिए अपने घर द्वार छोड़ कर कई हजारों किलोमीटर आंध्र व तेलंगाना, तमिलनाडु व कर्नाटका तक मजदूरी खोजते हुए पहुंच जाते हैं। मजदूरी के रूप में बोरवेल वाहन, रेलवे पटरी व बड़े बड़े भवन निर्माण कार्यों में मजदूरी करते हैं। कई बार इनके साथ अप्रिय घटनाएं होती रहती हैं। इसकी देख रेक करने वाला भी कोई नहीं होता हैं। उन्हे अपने हाल में छोड़ दिया जाता है। कई माह मजदूरी करने के बाद जब मजदूर वापस अपने घर जाने की अनुमति अपने ठेकेदार से मांगते हैं तो इनके साथ शोषण व मार पीट किया जाता है। ऐसी कई घटनाएं देखने को मिल चुकी हैं।
मानव तस्करों की चांदी

बस्तर के मजदूरों तेलंगाना व आंध्र मजदूरी के लिए जाना होता है कोंटा से होकर ही अधिकतर जाया करते हैं। प्रतिदिन कोंटा के बार्डर पर हजारों की संख्या में मजदूरों को पलायन करते देखा जा सकता है। मजदूर जब अपनी रोजी रोटी के लिए आंध्र व तेलंगाना जाने के लिए कोंटा पहुंचते हैं तो पहले से ही लालच का जाल बिछा कर बैठे मानव तस्कर मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए मजदूरी की अच्छी दर दिलाने का प्रलोभन देकर उन्हें ठेकेदारों को बेच दिया जाता है। कई माह मजदूरी करने के बाद जब अपना मेहनताना ठेकेदार से मांगा जाता है तो ठेकेदार के द्वारा अपने एजेंट (मानव तस्कर) से मांगने को कहता है जबकि मजदूर एजेंट कौन हैं जानते ही नहीं हैं। कोंटा के आस पास लगातार खुले आम बस स्टैंड, बार्डर इलाके में जाल बिछा कर ये बैठे रहते हैं। इन पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाती है।
मजदूरी का आनलाईन भुगतान भी बनता जा रहा पलायन का बड़ा कारण – इन दिनों छत्तीसगढ़ के अतिसंवेदनशील जिलों में भी केंद्र सरकार के निर्णय ने मनरेगा के कार्यों का मजदूरी भुगतान आनलाईन कर बंटाधार कर दिया है। बस्तर के अतिसंवेदनशील जिले जहां आनलाईन भुगतान संभव नहीं है जैस सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, आदि हैं। जहां लोगो को पेंशन के लिए भी तीन चार दिन बैंकों के चक्कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में आनलाइन मजदूरी भुगतान कहा से संभव हो सकता हैं। अभी तक मुख्य मार्ग के पंचायतों में भी सभी के बैंक के खाते नही खुल पाए हैं। अंदरूनी क्षेत्रों में क्या उम्मीद किया जा सकता है। अब केंद्र सरकार के आनलाईन पेमेंट के निर्णय से मजदूरों की पलायन की संख्या और बढ़ सकती हैं।
पलायन पर प्रशासन नही दे रहा ध्यान – प्रति दिन सुकमा, दंडेवाड़ा, बीजापुर से हजारों की संख्या में मजदूर पलायन कर रहे हैं , मगर प्रशासन इसको रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। अगर प्रशासन समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगा पाता है तो आनलाइन भुगतान के बाद जो माहौल देखा जा रहा है इससे पूरे गांव के गांव खाली होने की संभावना है।
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