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इतिहास में पहली बार होगा ऐसा जब, 612 साल बाद 15 दिन का आइसोलेशन पूर्ण करने के बाद प्रभू नहीं देंगे भक्तों को दर्शन

locationजगदलपुरPublished: Jun 09, 2020 11:11:31 am

Submitted by:

Badal Dewangan

रथयात्रा के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब भगवान स्वस्थ होने के बाद भी भक्तों के बीच नहीं आएंगे

इतिहास में पहली बार होगा ऐसा जब, 612 साल बाद 15 दिन का आइसोलेशन पूर्ण करने के बाद प्रभू नहीं देंगे भक्तों को दर्शन

इतिहास में पहली बार होगा ऐसा जब, 612 साल बाद 15 दिन का आइसोलेशन पूर्ण करने के बाद प्रभू नहीं देंगे भक्तों को दर्शन

जगदलपुर. बस्तर में जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास ६१२ साल पुराना है लेकिन इस बार कारोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए इस पर ब्रेक लग सकता है। ऐसा पहली बार होगा जब भगवान १५ दिन तक की उपचार अवधि पूरी करने के बाद भी भक्तों के सामने नहीं आएंगे। उपचार अवधि अभी जारी है जो कि २२ जून को नयन उत्सव के साथ पूरी होगी। इसके अगले दिन ही रथ खींचा जाता है जिसका आयोजन इस बार अधर में है। भगवान जगन्नाथ का महापर्व रथयात्रा बस्तर में 61२ साल से गोंचा के नाम से मनाया जा रहा है। पुरी की तरह यहां भी तीन रथों पर भगवान विराजते हैं। इनकी सलामी देने के लिए हजारों ग्रामीण तुपकी चलाते हैं। इस मौके पर 104 गांवों में आरण्यक ब्राह्मण जगन्नाथ मंदिर में छह दिवसीय महाभंडारा आयोजित करते हैं। यह पर्व दशहरा के बाद बस्तर का दूसरा सबसे चर्चित महापर्व है।

1408 में मिली रथपति की उपाधि
बस्तर महाराजा पुरुषोत्तम देव 1408 में भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने पुरी गए थे और वहां बस्तर बाड़ा बनाकर लंबे समय तक रहते हुए भगवान की आराधना की थी। इस दौरान उन्हें रथपति की उपाधि मंदिर के पंडों ने दी थी। वहीं 16 पहियों वाला रथ भी भेंट किया था। पुरी से प्राप्त 16 चक्कों के रथ को ही बस्तर में तीन हिस्सों में बांटकर दशहरा और गोंचा के समय चलाया जाता है। यह परंपरा लगातार 6११ साल से जारी है। 16 पहियों वाले रथ को चलाने में दिक्कत होती थी इसलिए 1810 में बस्तर दशहरा के 12 पहियों वाले रथ को आठ व चार पहियों का कर दिया गया था। तब से चारपहियों वाला रथ फूलरथ और आठ पहियों वाला रथ बाहर और भीतर रैनी के दिन विजय रथ के रूप में संचालित किया जाता है। महाराजा पुरुषोत्तम देव को रथपति की उपाधि देने के बाद ही 610 साल से बस्तर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निरंतर जारी है। समयानुसार बस्तर रियासत की राजधानी लगातार बदलती रही इसलिए यह रथ कभी मधोता तो कभी बस्तर में संचालित होता रहा। जगदलपुर को राजधानी बनाने के बाद वर्ष 1775 से जगदलपुर में रथ संचलन शुरू हुआ।

पहले चलते थे सात रथ
रियासतकाल में गोंचा के मौके पर यहां सात रथों का संचलन होता था। भगवान जगन्नाथ मंदिर के छह मंदिरों में विराजित भगवान जगन्नाथए भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रहों को छह रथों पर विराजित किया जाता था। वहीं सातवें रथ में भगवान रामए सीता और लक्ष्मण की प्रतिमा विराजित रहती थी। यहां भगवान जगन्नाथ की बड़े गुड़ीए मरेठियाए मलकानाथए कालियानाथए अमात्यए भरतदेव गुड़ी है। यहां स्थापित 22 मूर्तियों को ही छह रथों में विराजित किया जाता था। अब इन्हें तीन रथों में विराजित कर रथयात्रा शुरू होती है।

104 गांवों का महाभंडारा
रथयात्रा के मौके पर बस्तर संभाग के 104 गांवों में निवासरत आरण्यक ब्राह्मण जगदलपुर स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में छह दिवसीय महाभंडारा आयोजित करते हैं। इसे अमनिया कहते हैं। इसके लिए छह टोलियां बनाई गई हैं। हर टोली में करीब 20.25 गांव आते हैं। इस महाभंडारा में प्रसाद ग्रहण करने हजारों की संख्या में श्रद्घालु पहुंचते हैं।

पुरी की तरह तीन रथ
रथयात्रा के मौके पर भगवान जगन्नाथए बलभद्र और सुुभ्रदा के लिए पुरी में तीन अलग.अलग रथों का संचलन होता है। छत्तीसगढ़ में बस्तर ही ऐसा स्थल है जहां रथयात्रा के मौके पर तीन रथों का संचलन होता है। इन रथों में कुल 22 मूर्तियों को विराजित किया जाता है। रथों का निर्माण टेंपल कमेटी द्वारा किया जाता है। प्रतिवर्ष एक नए रथ का निर्माण किया जाता है। रथों को रखने के लिए विशेष स्थल बनाए गए हैं।

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