बोर खोदा गया, लेकिन पानी नहीं मिल सका
कहीं भी बोर या फिर हैंडपंप के लिए खोदाई का भूजल स्त्रोत के लिए सर्वे कराया जाए। आए दिन पीएचई द्वारा रिपोर्ट दी जाती है कि बोर खोदा गया, लेकिन पानी नहीं मिल सका। इसमें एक तरफ हजारों रुपए फि जूल में खर्च हो जाते हैं, तो दूसरी तरफ उस गांव के ग्रामीणों के लिए परेशनी जस की तस बनी रहती हैं। सबसे अहम बात एक बार किसी भी गांव में बोर हो जाए उसें पानी आय या फिर ना आए। तब भी उस गांव में बोर फिर से स्वी$कृत होने कें में कम से कम छह माह का समय लग जाता है। यह छह माह ग्रामीणों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होते हें। उसके बाद भी सबक नहीं लिया जा रहा है। विभागीय जानकारी के मुताबिक २०१३ से लेकर अब तक १४२ मामले ऐसे सामने आ चुके हैं। जब पीएचई ने खुद माना है कि बोर सफल नहीं हो सकता। अफसरों ने पानी नहीं आने का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में पड़ रही भीषण गर्मी में ग्रामीणों को पानी कैसे मुहैय्या हो सकेगा।
जहां मन किया वहां खोदाई
वर्तमान में किसी भी ठेकेदार को कई गंव के लिए एक साथ बोर करवाने के लए ठेका दे दिया जाता है। अधिकारी न ठेकेदर मौके पर पहुंचते हैं। सूची बोरवालों को दे दी जाती है। गांव में जहां मन किया वहां पर बोर कर दिया जाता है। बाद में पानी का स्तर कैसा है, पानी आया की नहीं इससे कोई सरोकार नहीं रहता। यही वजह है लगातार बोर असफल हो रहे हैं।
बाद में पता चला फ्लोराइड निकला, काम करना पड़ा बंद
पीएचई विभाग द्वारा बगैर सर्वे या फिर पानी की रिपोर्ट लिए बोर खोदना महंगा पड़ रहा है। बोर करने से पहले सर्वे करने के बजाए बाद में इसकी सैंपल की जा रही है। बाद में जहां पानी का स्तर घटिया निकल रहा है तो कभी इसमें फ्लोराइड की मात्रा सामने आ रही है। लिहाजा एक दर्जन हैंडपंप बंद करना पड़ गया।