स्कूल प्रबंध ने बच्चों का प्राइवेट फार्म भरवाया था
इस बीच विभागीय सूत्रों का कहना है कि जांच पूरी हो गई है लेकिन डीईओ ने फाइल रोकी हुई है। कलक्टर की अनुशंसा पर ही बोर्ड स्कूल प्रबंधन पर जांच के आधार पर कार्रवाई करेगा लेकिन फाइल डीईओ दफ्तर से आगे नहीं बढऩा कई सवालों को जन्म दे रहा है। इधर, अपात्र बच्चों का भविष्य स्कूल प्रबंधन की लापरवाही की वजह से दांव पर लगा हुआ है। माध्यमिक शिक्षा मंडल ने फर्जीवाड़ा फूटने के बाद हम ऐकेडमी के १० बच्चों को नियमित छात्र के रूप में अपात्र बता दिया था। इसके बाद स्कूल प्रबंध ने बच्चों का प्राइवेट फार्म भरवाया था। बोर्ड ने अब प्राइवेट छात्र के रूप में परीक्षा दिए जाने पर भी संदेह जताते हुए रिजल्ट रोक दिया है। इस पूरे मामले में शुरू से स्कूल की भूमिका बोर्ड की नजरों में संदेह के दायरे में है।
इन अफसरों को डीईओ ने दिया था जांच का जिम्मा
अपात्रों को एडमिशन देने के मामले में डीईओ ने जांच दल का गठन किया। इसमें ३ अफसर शामिल थे। सहायक संचालक भारती प्रधान, बस्तर हाई स्कूल की प्राचार्य सुषमा झा और बीईओ एमएस भारद्वाज जांच दल का हिस्सा थे। इन अफसरों को डीईओ के मागदर्शन में जांच पूरी करनी थी पर विभागीय सूत्र बताते हैं कि इन्हें दूसरे कामों में व्यस्त रखकर जांच को लंबा खींचा गया। जांच अवधि के दौरान इन तीनों को मीडिया से बातचीत नहीं करने की हिदायत दी गई थी।
15 दिन में होने वाली जांच ४ महीने में नहीं हो पाई
इस मामले को जिले के शिक्षा विभाग ने कितनी गंभीरता से लिया इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि १५ दिन में पूरी हो जाने वाली जांच ४ महीने बाद भी अधूरी है। डीईओ एचआर सोम दावा करते रहे कि वे स्कूल प्रबंधन को मामले में बख्शेंगे नहीं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चार महीने बाद भी जांच पूरी नहीं हुई। स्कूल प्रबंधन ने छात्रों का भविष्य अधर में डाल दिया। उनके रिजल्ट रोक दिए गए।