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रावण का वध किया जाता है
भूमका में भी रहा दशहरा की धूम: उसी तरह ग्राम पंचायत भूमका के मूर्तिकार मोहन सिंह कुंवर, ग्राम के वरिष्ठ वीरेंद्र चनाप, देव सिंह निषाद, बैजनाथ तिवारी, सतीश कुंवर, नारायण कुंवर, अध्यक्ष भैसाखु मंडावी, रामभरोस कुंवर का कहना था कि हमारे पुर्वजों के अनुसार यह परंपरा सर्व प्रथम भूमका से 1947-48 के दशक से शुरू हुआ जो आज तक निरंतर चलते हुए रावण का वध किया जाता है और उसके नाभि से निकला हुए अमृत को लोगों के द्वारा तिलक के रूप में अपने माथे पर लगाया जाता है और धन ऐश्वर्य के प्रतिक माने जाने वाले रैनी पत्ता को साथ घर ले जाते हैं।
मिट्टी से बना रावण का होता है वध
कार्यक्रम के सुत्राधार एवं पूर्वजों से रावण मुर्ती के निर्माता हिर्री के रामचंद्र राना एवं भूमका के रूपसिंह निषाद और मोहन सिंह कुंवर के कहे अनुसार यहां पर रावण का दहन नहीं होता यहां मिट्टी के बने रावण का वध होता है रामलीला के पश्चात श्रीराम जी द्वारा रावण के नाभी मे तीर मारकर उनका वध किया जाता है और रावण के नाभी में अमृत भण्डार से जो अमृत का श्राव होता है उसका तिलक लगाने ग्रामीण जन उमड़ पड़ते है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई तिलक लगता है तो उसे शारीरिक मानसिक व आर्थिक रूप से स्वास्थ्य लाभ होता है।