एक्सपायरी पैकेट स्पलाई के लिए तैयार
शहर के महारानी वार्ड में एफसीआई गोदाम के पास मां संतोषी स्व. सहायता समूह की महिलाएं रेडी टू ईट बनाती हैं। जिस कमरे में रेडी टू ईट बनाया जा रहा वह मकडी के जाले और गंदगी से पटा हुआ है। वहीं जिस अनाज से कुपोषि बच्चों के लिए रेडी टू ईट बनाया जाना है उसे चुहे कुतर रहे है। इतना ही नहीं यहां पर टू ईट का एक्सपायरी पैकेट भी मिला है, जिसे आंगनबाड़ी केंद्रों में सप्लाई के लिए रखा गया था। यहां पर ज्यादातर पैकेट के पैकेजिंग भी लूज मिला, जिससे प्रोडक्ट में जल्द ही खराबी होने की आशंका बनी हुई है।
गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं देते हैं जिम्मेदार
जिले के २ हजार 110 आंगनबाड़ी केंद्रों में 64 महिला समूह रेडी टू ईट फूड की सप्लाई करते हैं। इसमें एक महिला समूह को डेढ़ से दो लाख रुपए तक भुगतान होता है। ऐेसे में 64 समूह को डेढ़ लाख रुपए के हिसाब से हर महीने करीब 96 लाख रुपए तक भुगतान होता है। इसके बावजूद रेडी टू ईट फूड की गुणवत्ता को लेकर अधिकारी कर्मचारी सिर्फ खानापूर्ति ही करते हैं।
जिले में 17 हजार बच्चे कुपोषित
बस्तर जिले में करीब 1987 आंगनबाड़ी और 123 मिनी आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रही है। इन केंद्रों में करीब एक लाख 10 हजार बच्चे पंजीकृत हैं। इसमें 10 हजार 170 बच्चे कुपोषित है, तो वहीं 7 हजार 45 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इन कुपोषित बच्चों की संख्या कम होने के बजाए हर साल बढ़ रही हैं।
हर साल बढ़ रहे अतिकुपोषित बच्चे
जि ले में हर साल अतिकुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। 2017-18 में कुपोषित बच्चों की संख्या 34.90 प्रतिशत, 2018-19 में 34.75 प्रतिशत रहा है। वहीं 2017-18 में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 10.03 दर्ज किया गया था, जो 2018-19 में 10.14 प्रतिशत तक बढ़ गया। बावजूद रेडी टू ईट फूड की गुणवत्ता को लेकर अधिकारी सिर्फ खानापूर्ति ही करते हैं।